विधा- पंञ्च चामर छंद
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निसार प्राण मातृभूमि को, लहू पुकारती ।।
निगाह दुष्ट, राष्ट्र पे पड़े न ! माँ कराहती ।।
बिना प्रयास के बढ़े न स्वाभिमान देश की ।
सलाम राष्ट्र प्रेम! शूर वीर भेंट प्राण की ।।
डटे रहे शूर वीर छद्म युद्ध देख वो डरे नहीं ।
झुके न मान देश का शहीद हो गए वहीं ।।
सुखी रहे सभी, दुखी न भारती मिले कभी
शहीद देश के लिए मिटे,न भूलना सभी ।
घटे न मान मातु का उठा कृपाण तू जरा ।
करो विनाश शत्रु का रहे सुखी वसुन्धरा ।।
उठा मशाल , नाश दुष्ट का, करे प्रवीर है।
सुनो गुहार मातु की, बहा लहू, अधीर है ।।
दिखा दिया शहीद राह देश को, सलाम है ।
उबाल रक्त का घटे नहीं, हिया हुलास है ।।
लगे न दाग मातु पे झुका न शीश वीर तू ।
छुपे न दुष्ट एक भी करो तलाश वीर तू ।
गुलाम बेड़िया खुली, मिली हमें स्वतंत्रता ।
मिली हरेक को खुशी , रहे मही विलासिता ।।
हुए शहीद पुत्र, मातु गर्व से निहारती ।
उजास कर्म की, ढले न सूर्य वो, दुलारती ।
करो विनाश शत्रु का रहे सुखी वसुन्धरा ।।
उठा मशाल , नाश दुष्ट का, करे प्रवीर है।
सुनो गुहार मातु की, बहा लहू, अधीर है ।।
दिखा दिया शहीद राह देश को, सलाम है ।
उबाल रक्त का घटे नहीं, हिया हुलास है ।।
लगे न दाग मातु पे झुका न शीश वीर तू ।
छुपे न दुष्ट एक भी करो तलाश वीर तू ।
गुलाम बेड़िया खुली, मिली हमें स्वतंत्रता ।
मिली हरेक को खुशी , रहे मही विलासिता ।।
हुए शहीद पुत्र, मातु गर्व से निहारती ।
उजास कर्म की, ढले न सूर्य वो, दुलारती ।
दया करो दया निधे नही रहें मही दुखी ।
खिले कली, खुशी मिले ,रहे जहां तभी सुखी ।।
धरा रहे हरी भरी, यहाँ बिखेर तू खुशी
नहीं कहीं विनाश हो, भरो वितान तू हँसी ।।
उषा झा देहरादून ठ
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