Wednesday 22 January 2020

भव तारिणी अम्बे


विधा - श्री गीतिका
2212    2212  2212  2212

माता क्षमा की हूँ सदा भूखी मुझे आशीष दो।
दुर्गा तुम्हारे द्वार आई आस से, माँ दर्शन दो ।।

जननी सुधी लें कौन है संसार में , जाऊँ कहाँ 
है पाप की झोली भरी, मैया तुझे, पाऊँ कहाँ

लिपटी रही माया हृदय कैसे करूँ मैं अर्चना
हे मात तू मेरी बने,आई भरे उर रंजना

पट्टी पड़ी थी नैन पर्दा  भूल पे  डाली रही
वरदान से झोली भरो ओ माँ रहे खाली नहीं
     
हे भगवती तू मुक्ति दे तेरी शरण में पापी पड़ी
हूँ आस की दीपक लिए ,कर जोड़ है दासी खड़ी

जो तू रहे ईष्या लिए, पर हीत कुछ करते कभी
पछता रहे क्यों अब, समय आता नहीं वापस सभी

उषा झा देहरादून 

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