Wednesday 8 January 2020

कचरे में बेटी


 14/ 14
क.
बेटी की मौत, कोख में ,
सरेआम हो आज रही  ।
ममता की प्याली खाली,
कचरे में खो, नित्य  रही ।।
हृदय लालसा बेटे की , 
सुता उपेक्षा सहती है ।
शर्मसार है आज सृजन
फूट कर वसुधा रो रही ।।
ख.
अत्याचारी छीन रहे
मातु पिता की नींदे तक।
नहीं सुरक्षित बच्ची भी ,
कोई  सँभाले कहाँ  तक?
 जन्म ,कली लेगी कैसे ,
अभिभावक सब डरे हुए ।
स्कूल से घर तक बच्ची,
साये में डर के कब तक? 
ग.
पढी -लिखी बेटी ब्याही ,
दौलत बिना न जा पाती ।
दहेज उजाड़ी जिंदगी,  
बिटिया जान चली जाती।
हँसी खुशी घर सँभालती , 
पर खुद की परवाह नहीं   ।
चाह नहीं  चंद लम्हे की  ,
बिटिया कभी न सुख पाती।

उषा झा देहरादून

No comments:

Post a Comment