2122 1212 22/112
रदीफ - करे कोई
काफिया - आ
मिसरा - मेरे दुख की दवा करे कोई।
2122 1212 22
रंजो गम जो कहा करे कोई ।
पीर उसकी सहा करे कोई ।
ताश सी जिन्दगी नहीं बिखरे।
मेरे दुख की दवा करे कोई ।।
मेंहदी हाथ में रची ही थी ।
मांग में खूँ भरा करे कोई ।।
फूल भी साख से बिछुड़ रोये ।
बाग उजड़े दगा करे कोई ।
प्रेम आघात सह न पाते अब ।
राह सजदा सदा करे कोई ।।
काश टूटे न दिल किसी का भी।
प्यार पर बंदिशे खफ़ा करे कोई
भेद अब ऊच नीच में क्यों है?
रीत ऐसी दफा करे कोई ।।
रात तम की हटे जगत से अब ।
हो अमन बस वफा करे कोई ।।
नैन मोती झरे न जग वालो ।
नूर माँ का विदा करे कोई ।।
उषा झा देहरादून
सादर समी
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