Monday 28 December 2020

उर्मिला सुप्रीता

विधा- शंखनादी / सोमराजी छंद
विधान- यगण यगण (122 +122)
दो दो चरण तुकांत , 6 वर्ण

भजो राम सीता ।
मिले ईश मीता ।।
करो प्रेम सच्चा ।
नहीं मोह अच्छा ।।

धरा देव आए ।
सभी संत गाए ।
सुधा प्रेम लाए ।।
सभी पुण्य पाए।

सुनो भक्त सारे ।
कथा सत्य प्यारे ।।
लिखी है पुरानी।
अयोध्या कहानी ।।

कहे राम गाथा ।
पिता ऊँच माथा ।।
सिखाते सभी को।
करो प्यार मही को ।

रहे आन दाता ।
गये छोड़ माता ।।
बिना राम जीती
सदा पीर पीती ।

छली क्यों विमाता
नहीं गेह नाता ।।
बहे नीर भ्राता ।
किया क्या विधाता ।।

लिए पाद भाई ।
चले संग माई ।।
सिया राम खोये ।
सभी भ्रात रोये ।।

बिना पी अकेली
नहीं है सहेली ।।
 पिया की  सुप्रीता ।
 हिया उर्मि रीता  ।।

*उषा की कलम से*
देहरादून

Thursday 5 November 2020

सैनिक सौरव भारत के


 विधा - महिया
मात्रा भार- 12, 10, 12

सरहद जाओ सजना 
 दुश्मन को मारो 
मानो मेरा कहना ।।

विरहा पल पल भारी
 सपने में हमको
करनी बातें सारी ।।

तुम बिन मुश्किल जीना ।
  दुख सहकर भी है ,
 पल पल चौड़ा सीना ।।

 प्रियतम गम मत करना ।
   जन्मों के साथी
 हिम्मत हरदम रखना ।।

 तुमसे आशा सबको 
    झंडा नव गाड़ो  
 अब  मारो दुष्टों को ।।

माता के गौरव हो
रखना सिर ऊँचा 
भारत के सौरभ हो ।।

 उषा झा  स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

दुहिता अपमान नहीं सहना

आयोजन- तोटक छंद वर्णिक 02
दिन - गुरूवार 
दिनांक-15.10.2020
मात्रा - 112  112 112 112
 
मन आहत   देख अधर्म मही ।
कलि मर्दन से नित आँख बही।।
नित घात लगा रिपु जो  छिपता।
उर मूक सदा, कलि क्यों  छलता?

 पितु मात अचंभित से वसुधा ।
जग में कलि जीवन क्यों समिधा ।।
अरि  शील हरे डर में  ममता ।
सुलगे मन देख  सदा  दुहिता ।।

बन रावण दुष्ट सिया हरते  ।
कलि के मन घायल वो करते ।।
धरती  अवतार उमा धर लो ।
 जननी खल नाश धरा कर लो   ।।

जब हो कलि मर्दन दंड मिले।
रिपु शीश नहीं अब काल टले ।।
दुहिता अपमान नहीं सहना ।
बन अग्नि शिखा नहीं जलना ।।

उषा झा -स्वरचित 
देहरादून - उत्तराखंड

नारी अबला नहीं


 221    1222    221   1222
इंसान नहीं सच्चे है लाज कहाँ उसको
पट चीर रहे नारी अब मार भगा उसको ।

अबला न समझ कोई वो तो जगत जननी ।
सम्मान मिले हर स्त्री नर दो न सजा उसको ।

 पहचान मिटा कर था अभिमान जिन्हें खुद पर 
क्यों आज भुला बिसरा परिवार दिया उसको ?

 जग पूज सदा माता संकल्प करो सब ये ।
 वो मूल धरा की अब बहला न जहाँ उसको ।।

 मन मोद   रहे नारी, घर राज करे बेटी ।
 मति भ्रष्ट कलुष को नर लो आज घटा उसको ।।

उषा झा स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

राम सा भ्रात कहाँ


विधा - अरुण छंद 
212 , 212 , 212  212

राम से, पूत जग, में नहीं अब मिले 
भ्रात उन, सा कहाँ, इस धरा के तले ।
मान पितु, का रहे, वन गए हर्ष से।
राज को, तज दिए दूर पर क्षोभ से ।

मातु के, मोह तज, वन चले इक कुँवर ।
था महल, में करुण दृश्य आठो पहर ।।
हे भरत, बस करो , धीर अब माँ धरें।
राम के, मधु वचन,  शोक सबके हरे ।।

त्याग में, सुख परम, मनु यही धर्म है।
हो प्रजा, बस सुखी, शुचि सही कर्म है
राम से प्रीति रख , जीव भव से तरा ।
मोह से थे परे , देव उतरे धरा । ।

अंजनी, सुत बली,राम के भक्त थे। 
वीर के, शीश पर,प्रभु वरद हस्त थे।
उर बसे ,राम जब , छू न कोई सके ।
प्रेम उन, सा नही,चीर उर को सके।

संग प्रभु, कब हरा, कौन दानव सके ?
बाँध भी, तो नहीं , दैत्य वानर सके ।।
नाम जब, था पवन,बस गगन उड़ गए ।
जल गए, सब महल, देख के दुष्ट रह गए ।

राम के, दास बन , पीर सिय के सुने ।
देख सिय, मन विकल, स्वप्न उनके बुने।।
राम के, काज वो,दूत बन के किए। 
इस धरा, फिर कहाँ,भक्त हनुमान हुए।

#उषा #की# #कलम से
    देहरादून उत्तराखंड

रिन्द शर्मिन्दा

प्रदत्त बह्र पर ग़ज़ल सृजन:-२१
प्रदत्त बहर:-  बहरे-रजज़ मसम्मन सालिम
मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन
मापनी:-  2212  2212  2212   2212                 
दिन:- बुधवार
दिनांक:- 28/10/2020
रदीफ़- किस बात का
काफ़िया- 'अ'
________________________________________
2212       2212        22 12       2212 
    
 बेईमान जो भाई, मिले आदर उन्हें अब किस बात का ।
 बदनाम जब हो ही गया तो लाज फिर किस बात का।।

नंगे सभी रिश्ते दिखे अब प्रेम जग में खोखले ।
झूठे लगे हर आदमी, पिघले हृदय किस बात का ।।
 
देखो  मुखौटे में  छिपे  दानव  करे  हैं  तांडव ।
जो भेडिया हो कुटिल, उम्मीद मन किस बात का ।।

करता नहीं कोई भला, पर डींग ज्यादा  मारता ।
उपदेश वो छाँटे सभी पर, नित्य दिन किस बात का ।।

जब नैन के सब ख्वाब टूटे राख में हर ख्वाहिशें ।    
सुन रिन्द शर्मिन्दा सदा ही, बोल तुम किस बात का।।

#उषा #की #कलम#से  
देहरादून

Sunday 1 November 2020

दुहिता में नेह भरें


विधा - मनहरण घनाक्षरी

क्यों कली को नोच डाला, दुखदायी पीती हाला, 
हुई तार-तार स्मिता,जीना दुश्नवार है ।।

सरे आम लाज लुटी,घटना ये कैसी घटी,
 सिसकी कहीं लाडली ,सोया संसार है।।

दूषित समाज सारा, बह रहा नैन खारा,
वहशी शिकारियों से,बिटिया शिकार है ।।

वहशी को मिले सजा,खिले नहीं फूल ताजा,
कोख शर्मसार करे,हद हुई पार है ।।

सह रही बेटी घातें, रिपु लार टपकाते , 
पड़ी खूँखार निगाहें,मन में संताप है ।

बेटी जनना भूल क्या? ज्ञान नष्ट समूल क्या ?
 बचा नहीं उसूल क्या ? बेटी अभिशाप है ।।

सृष्टि ये सवाल करे , दुष्ट क्यों बवाल करे ? 
दुहिता में नेह भरें,देवी की प्रताप है ।

वनिता से कोख तरे, जग का कल्याण करे ,
उन्हें देख नहीं जरें, कलि प्रेमालाप है ।।

#उषा #की #कलम #से 
देहरादून उत्तराखंड

Sunday 25 October 2020

उमा की चौकी से शुचित आँगन

आयोजन - 
विधाता- छंद 
1222  / 4
दिवस नवरात्रि का आया लगाते भक्त जय कारे ।
सजा दरबार माता का खडी हूँ माँ रमा द्वारे ।।
शिवा का नाम अंतस में हरे सब दुख महादेवी ।
शुचित कन्या जिमाया है रहे हर्षित सदा देवी ।।

सवारे मातु बिगडे काज भक्तों की यही विनती।
दनुज से मुक्ति को सुर ने दुखी होकर करी विनती।
धरी तब कालिका अवतार  भर ली नैन अंगारे  । 
किया भय मुक्त देवों को भगाया दैत्य को सारे।।

हिमाचल की सुता गौरी धवल रूपा जगत न्यारी ।
युगो तप से मनाई थी पुरारी को रमा प्यारी  ।
विराजे बैल पर अम्बे अभय मुद्रा मधुर वाणी ।
नमन करती वृषा रूढा अनन्या मातु कल्याणी।।

महागौरी जगत जननी हिया ममता बड़ी भारी ।
करूँ पूजा भवानी की जगत उन सा न उपकारी ।।
चढाऊँ पुष्प गुड़हल से मनाती मातु महामाया ।
सजे सिंदूर की लाली रहे माँ प्रीत का साया ।

किया शृंगार चंडी का मनोहर रूप मतवाला ।
सजाती हूँ उमा छतरी मिले माँ नेह मधुशाला।।
पुजारी हूँ शिवानी की मनोरथ पूर्ण कर देना।
दया की मूर्ति हो माता गले से बस लगा लेना।।

जहाँ चौकी सजे गौरी शुचित आँगन वही होता ।
सुभग पग मातु का पडता वहाँ कोई नहीं रोता।
भरे झोली सदा दुर्गे,रहे खुश हाल हर कोई ।
कलुष मन के धुले आशीष दो अब मातु हर कोई।।

उषा की कलम से
 देहरादून उत्तराखंड

Tuesday 20 October 2020

भवानी की महिमा

विधा - शक्ति छंद / मात्रिक छंद
यमाता यमाता यमाता लगा
122 122 122  12

शुभे गेह तेरी चरण चँद्रिका ।
तुम्हारी सदा जय करूँ अंबिका ।
सुशोभित दिखे शेर माँ संग में ।
सदाशिव विराजे सदा संग में ।

छटा शाम्भवी देख नैना ठगे ।
अलौकिक जया दिव्य मूरत लगे।।
निहारूँ सदा चँद्रघंटा तुम्हें ।
गहो वैष्णवी भक्ति उर में हमें ।।

गले में सदा मुण्ड माला सजे ।
धरे चँद्र सिर शौर्य डंका बजे ।।
सजी केतकी कर कमंडल लिए।
धरा दैत्य से मुक्ति तुमने दिए ।।

भुजा शस्त्र तलवार तुम धारती ।
असुर को तुम्हीं मातु संहारती ।।
महाशक्ति अवतार फिर से धरो ।
सुवर्णा सकल कष्ट सबके हरो ।।

सुनैना  जगत को तुम्हीं पालती ।
शुभांगी वरद हस्त ही माँगती ।।
कृपा हो  सताक्षी करूँ वंदना ।
मृगाक्षी  हरो मम हिया  रंजना ।।

सकल दैत्य मारे अपर्णा तुम्हीं ।
महिषमर्दिनी चंडिका माँ तुम्हीं।।
मरे मधु और कैटभ दी जग खुशी
जया और विजया सखी मुख हँसी ।।

बजी शंख घंटी करूँ आरती ।
सभी भक्त को माँ उमा तारती ।
सुधा नेह जग में सदा बाँटती ।
भवानी कृपा से विपद भागती।।

उषा झा स्वरचित
देहरादून उत्तराखंड

Friday 31 July 2020

ठूँठ जीवन सहर नहीं आती

2122   1212  112/22
काफिया - अर
रदीफ - नहीं आती 

नींद आठो पहर नहीं आती ।
याद तुझको मगर नहीं आती ।।

बावरा मन सजन, बना जोगन ।
दूर दिलबर, खबर नहीं आती  ।।

रोज  आँगन  बुहारती  हूँ मैं ।   
प्रीत की धूप दर नहीं आती   ।।                                                           
चाँद रूठा मिरा, जहाँ सूना ।
चाँदनी की लहर नहीं आती ।।

 नैन प्यासे तरस रहे कब से ।
 प्रीत मेहर नज़र नहीं आती ।।

 बूँद सावन की बरसती देखो
 भूल कर इस डगर नहीं आती ।।

धार अविरल बही युगों से  हूँ ।
तुम तलक पर भँवर नहीं आती।।

प्रेम दरिया उतर गई  प्रियतम ।
पार कैसे करूँ नहर नहीं आती ।।

जख्म पीती उषा विरह की है।
ठूँठ जीवन सहर नहीं आती  ।

उषा  झा देहरादून 
सादर समीक्षार्थ 🌹🌹

हक कभी प्यार का अदा न हुआ

मिसरा - हद तो ये कि हक अदा न हुआ।
काफिया - आ
रदीफ - न हुआ
मापनी - 2122 1212 22

रैन क्यों खुशनुमाँ बता न हुआ ?
यार का प्यार भी दवा न हुआ

आस के दीप बुझ नहीं जाए ।
मरहवा दिल कभी हवा न हुआ ।।

नफ़्स प्यासा तरस रहा देखो ।
अंजुमन प्यार जो ,जवाँ न हुआ।।

यूँ मुहब्बत खलिश बढा देता,।
अब तलक दिल सनम खफा न हुआ ।।

आरजू  सिर्फ  थी  मिटे  दूरी ।
ख्वाब पूरा कभी मिरा  न हुआ ।

जीस्त तन्हा भटक रही बरसों ।
इक मुलाकात पर फिदा न हुआ।

तिश्नगी  बढ  गई   दिलों  में है ।
जुस्तजूँ नैन आशना न हुआ।।

दिल तडपता सदा मिले  दिलबर ।
हद तो ये कि हक अदा न हुआ।

दिल उषा का मुरीद है तुम पर ।
बज़म में ईश्क रूसवाँ न हुआ ।।

मरहवा - प्रसन्नता

उषा झा देहरादून

Monday 20 July 2020

ईश्क कर पछताये बहुत


मिसरा- "दिल लगाकर हम तो पछताये बहुत 

वज़्न- 2122 , 2122, 212
अर्कान - फ़ाइलातुणग फ़ाइलातुन फ़ाइलुन  ।
बह्र का नाम।- बह्ररे रमल मुसद्दस महफूज।

इल्म जिनके पास इतराये बहुत ।
चेहरे पर तेज मुस्काये बहुत।
                             
ईश्क करके हो गया बीमार हूँ ।
दिल लगाकर हम पछताये बहुत

मर मिटे थे एक दिन मुझपर तुम्हीं ।
प्यार करके आज क्यों पछताए  बहुत।।

शाद अज़मत  जिन्दगी में जब रहे ।
तब मुहब्बत नैन छलकाये बहुत।।

अम्न हो जग राह दिखलाना जगत।
देश पर कर नाज, जग भाये बहुत ।

हर अकूबत सोच अख़्तर से मिले ।
धीर रख ,संकट को सुलझाये बहुत। 

शोखियाँ बिजली गिराती है उषा ।
आशिकी तो रूह भरमाये बहुत ।।

शाद- प्रसन्नता
अज़मत- प्रतिष्ठा, आदर
अकूबत- यातना
अख्तर- भाग्य

उषा झा देहरादून

रिवायत देख रुखसत वाले


काफिया- अत
रदीफ़- वाले

अर्कान- फाइलातुन, फइलातुन,फइलातुन,फैलुन

मीटर- 2122,1122,1122, 22

राज दिल के छुपा' लेते ये' सियासत वाले ।
मैल दिल में भरे' दिखते हैं' शराफत वाले ।।

खोखले रिश्ते' हुए ,स्वार्थ में' डूबे मानव ।
जह़र उगले ये' जिह़ादी बने' नफरत वाले ।।

कब निभाया रे' मनुज फर्ज जरा' बोलो तो 
पोटली खोल के' बैठे हो' शिकायत वाले ।।

कीच अबला है' फँसी कौन उबारे उसको ।
तेरी बस्ती में' सभी तो बने' इज्जत वाले ।।

चाशनी में वे'  सदा  झूठ  परोसे  छल  से ।
मशविरा फालतू' के दे ये'  नसीहत  वाले  ।।

दौर कैसा,कज़ा' कैसी है हृदय' में गम  बस।
आँख नम आज रिवायत 'देख रुखसत वाले ।।
     
जिन्दगी में उषा' शफ़कत, दुआ' रब की मानो।       
आह भरते नहीं' दिलबर कभी' किस्मत वाले ।।

शफ़कत- मेहरबानी
रिवायत - रस्म 
कज़ा - मृत्यु

उषा झा देहरादून

Saturday 18 July 2020

फिर किसी अहिल्या को पत्थर बनाया जाएगा

काफिया - अर
रदीफ - बनाया जाएगा ।
अर्कान - फाईलातुन फाईलातुन
फाईलातुन फाईलातुन ।
2122  2122 2122 212
मिसरे का प्रयोग मतला में वर्जित है ।
फिर किसी अहिल्या को पत्थर बनाया जाएगा।

तोड़कर हर झोपड़ी  खँडहर बनाया जाएगा ।  
फिर  किसी मजबूर को बेघर बनाया जाएगा  ।

ताक पर रखकर नियम ऊल्लू बनाते दीन को।
घात दिल में, हाल अब बद्तर बनाया जाएगा ।

कोमलांगी वह कली, नस्तर  चुभाया  उसे ।
 दण्ड दे कर दुष्ट को बे पर बनाया जाएगा ।।

माँगते जो वोट मंदिर और मस्जिद के लिए ।
मतलबी को देश का रहबर बनाया जाएगा।।
 
दाग ऐसा लग गया आँचल में उसके झूठ का ।
फिर किसी अहिल्या को पत्थर बनाया जाएगा।

जब कहीं मस्जिद  कहीं मंदिर हुए नापाक तो। 
घातकी इस चाल को बवंडर बनाया जाएगा।

हर पहर तो प्राण है सबके अधर सुन उषा  । 
मौज हो  दिल नेह का निर्झर बनाया जाएगा ।।

उषा झा देहरादून

Sunday 12 July 2020

फीकी चाँदनी

काफिया - ई
रदीफ - होने का मतलब क्या है
2122   1122   1122     22
चाँद से आज दुखी होने का मतलब क्या है ।
प्यार में यार कमी होने का मतलब क्या है ।।

दामिनी  की  सदा  शृंगार   बढा  देती  जो ।
फीकी फिर चाँदनी होने का मतलब क्या है ।।
   
आसमाँ में हो मकाँ दिल में यहीं है चाहत ।
बिन तेरे कोई खुशी होने का मतलब क्या है ।।

दरबदर इश्क,  गिरे  नैनों से   मोती  देखो।
आरजू रोज छली होने का मतलब क्या है।

दिल हमेशा किसी के बस में तो नहीं रहता ।
लब पे मेरे ये हँसी होने का मतलब क्या है ।

सुन प्रिये मेरे भी बस में है नहीं मन मेरा।
सच है बिन तेरे सुखी होने का मतलब क्या है।।

आरजू है ये  उषा  की  न  बढ़े   दूरी  अब  ।
रश्मियाँ दिव्य घुली होने का मतलब क्या है।।

प्रोo उषा झा 

Saturday 4 July 2020

प्रहरी बने तपस्वी

 विधा- वीर छंद ( आल्हा छंद) आधारित गीत

नित जवान सरहद पर मरते , उबल रहा भारत का तंत ।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो,सुनो भारती करना अंत ।

आँधी तूफानों से लड़ते , कहाँ मानते  सैनिक हार ।
भीषण सर्दी में भी प्रहरी , सदा करें दुष्टों पर वार।।
विपदा माँ पर जब भी आई, किए वीर न्योछावर जान।
फर्ज  निभाते सपूत सच्चे, बन लीलाधर रखते मान ।।
मातु- पिता के लाल कभी वह,किसी सुहागन के हैं कंत।।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो,सुनो भारती करना अंत ।

कितने ही बलिदान दिए हैं,हुए तभी हम सब आजाद।
नियत बुरी है गद्दारों की,देखो करे  देश बर्बाद  ।।
घर गोली बारूद छुपाते,कलुष हृदय भरते मति भ्रष्ट।
सरहद पर  शिकार नित सैनिक,खोते हीरा हिय बहु कष्ट।
त्याग गेह वह बनते तपसी , सैनिक होते सच्चे संत ।।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो, सुनो भारती करना अंत। 
प्रतिपल प्रचंड़ धूप-शीत में ,अडिग वीर के माथ न रेख ।
चाह देश हित ही सर्वोपरि, चले एकला राही  देख ।।
आन बचाने भारत माँ की,  ढूँढ लेहिं  दुश्मन पाताल ।
आँख उठाए जब जब बैरी,चीर देहिं बन कर ये काल ।
 हर संकट को दूर भगाते , बन संकट मोचक हनुमन्त ।।
कुटिल चाल दुश्मन की अब तो,सुनो भारती करना अंत।।
नित जवान सरहद पर मरते , उबल रहा भारत का तंत ।।

उषा झा देहरादून

Friday 3 July 2020

चुटकी भर नमक अनमोल

रदीफ - नमक
काफिया - आ
2122-  2122-   2122-    212

प्यार मीठा ही रहे बस चाहिए थोड़ा नमक ।
दीद की दृग प्यास दिल मे यूँ बढ़ा देता नमक।

यार से यारी सफर भी खूबसूरत कट गया।
है मुहब्बत पाक दिल को बाँध के रखता नमक ।।
  
जिन्दगी में बिन नमक होता  गुजारा ही नहीं ।
नैन जल में भी  मिलाया ईश ने  खारा नमक  ।।

दीन को रोटी   मिले   खाता  बड़ा ही प्रेम से  ।
थाल में सब्जी नहीं बस डाल वो लेता  नमक।।
   
सार जीवन  तत्व हो नमकीन दिल सबका उषा  ।      
बिछ जगत जाता उन्हीं पर,हर जिया भाता नमक।।

 स्वाद भोजन में बढाता   मात्र  चुटकी भर ही ।
ध्यान रखना  भोज्य में डालें नहीं ज्यादा नमक।

चीज है यह काम की कीमत बड़ा अनमोल है।
मोद दिल में हो जुबां पर हो उषा घोला  नमक ।।





आस की लौ

काफिया- अम
रदीफ - न जाने किस लिए

2122    2 122   2122    212
रूठ जाता वो, मुहब्बत का गम न जाने किस लिए ।
प्यार नकली देख निकले हैं दम जाने किस लिए।

खार जीवन में भरा हो फिर मिले कैसे खुशी।
आस की लौ अब हुई मध्यम न जाने किस लिए ।

स्वार्थ में जो अंगुली टेढी करे वह ही सफल ।
सत्य की है चाह सबको कम न जाने किस लिए ।

ताक पर रखके वचन , खेती हुई जो झूठ की ।
हाल अपना देख आँखे नम न जाने किस लिए ।।

हौसले की ढाल लेकर तुम सदा बढते चलो ।
वो लगाते पीर के मरहम न जाने किस लिए ।।

ज़ीस्त तो रोटी नमक मे यूँ उलझते ही गयी।
आज ये ईमान भी बेदम न जाने किस लिए ।

चाँद तारे संग दुख सुख बाँटती निश्चछल उषा ।
नैन आशा नित ढली, हमदम! न जाने किस लिए ।

उषा झा देहरादून 

 सादर समीझार्थ 🌹🌹😊

Thursday 2 July 2020

घुँघरूँ की पुकार

विधा - कबीर छंद(सरसी छंद)
16/ 11अंत 21

मन्दिर मन्दिर महफ़िल सजती,घुंघुरु की झंकार।
मधुर मधुर धुन पर आ नचती, पीर परायी सार।

घुँघरू गीतों में रची बसी , करे भक्त रस पान ।।
अमिय धार नित बहे हृदय में, रास रंग की शान ।
अम्बे के दरबार में सजी, शुचित भजन शृंगार ।
मधुर मधुर धुन पर उर नचते, पीर परायी सार ।।

कला पुजारी पग बाँधे, प्रमुदित उर मृदु तान ।।
अप्सरा पग बाँध छीने , देवों के मन प्राण ।
मोहित प्रियतम के दिल धड़के,प्रीत जगत के सार।।
मंदिर मंदिर महफिल सजती, घुँघरू की झंकार।।

देवालय से विद्यालय, बढा गई सम्मान ।
सियासी गलियों की रही , घुँघरू सदैव जान ।।
चाह घृणित लोगों की बस वह , पहुँच गई बाजार।
मंदिर मंदिर महफिल  ....

नृत्यांगना के नृत्य पर , सजी सुरीली नूर ।
पग बँधी वाह पर नहीं थकी ,घुँघरू जग मशहूर ।।
चाह ईश को अर्पण बेड़ी से , मुक्ति ही परम सार ।।
मंदिर महफिल .....

कोठे की महफिल में सज , बिक गई बारंबार ।
हुस्न के वाह से आहत, बहते नैन से धार ।।
कच्ची कली के पग बँधी , हुए द्रवित उर खार ।।
मधुर मधुर धुन पर आ नचती, पीर पराई सार।

मंदिर मंदिर महफिल सजती, घुँघरू की झंकार।

उषा झा देहरादून
सादर समीक्षार्थ 🌹🌹

Monday 29 June 2020

नेहिल सरिता उर बहे

आयोजन - स्वतंत्र
दिन- शनिवार 
दिनांक- 19.6.2020
विधा - राधे श्यामी 
16/ 16 आदि अंत द्विकल 

सीमा पर नित्य कुटिलता अब,बढ रही धृष्टता अरि की है।
करते दुश्मन क्यों मनमानी,बलि चढती नित निरीह की है।
सुत वीर भारती के अनेक  , वो आन नहीं मिटने देंगे ।
हो देश सुरक्षित वीर जवाँ,दुश्मन के शीश काट लेंगे ।

शुचि सदा रहे जब ये वसुधा , तब प्रेम सुधा निर्झर बहती।
सत प्रीति देख निश्छल माता,खुशहाली भी घर-घर रहती।
कुछ संतानें अब भटक रहीं ,माँ वार पीठ पर सहती है ।।
सोने की चिड़िया जब लुटती , निशि दिन क्रन्दन वह करती है।

अब नहीं चलेगी बल जोरी, अरि का मर्दन बस करना है।
भारत माँ का सिर ऊँचा हो, हुंकार हृदय में भरना है।
मन के हों खोट दूर सारे, बस प्रेम सुधा जग बह जाए ।
कर लें सुविचार तनिक मानव,नेहिल सरिता उर बह जाए।
 

उषा झा देहरादून
उत्तराखंड

Friday 26 June 2020

उपेक्षित कारीगर

सारिका का घर बन रहा था , नित्य मिस्री और मजदूरों के लिए 
चाय बिस्किट सुबह शाम बड़े केटली में बना लाती ।सबको बड़े कप में चाय पिलाती , खुद भी अपनी कप भर लाती ।चाय
पीते पीते मीठी - मीठी बातें करती , मजदूरों के दुख सुख भी पूछ लिया करती ।
मिस्री और मजदूर खुश होते और मन से घर के डिजाइन 
पीलर , आर्च खुद एक से बढ़कर एक डिजाइन बनाते । सारिका मन ही मन फूली न समाती ।
उसे पता था ये मजदूर प्रेम और स्नेह के भूखे होते ।इनसे मीठी बातें कर वो घर मनपसंद तरीके से बनवा रही थी ।
घर का काम सम्पन्न हो चुका था ।मिस्री मजदूर का काम समाप्त हो चुका था ।
देखते देखते खूबसूरत घर तैयार हो गया ।मिस्रियों ने बहुत मनोयोग से गृह निर्माण किया था ।सारिका की नाक ऊँची 
होने लगी ।सुन्दर सुरूचिपूर्ण घर बनने के बाद धीरे धीरे उसको अहंकार होने लगा ।
एक दिन मिस्री आया अपना हिसाब करने ।धीरे धीरे वो घर के दहलीज तक आ गया , और मुग्ध होकर घर निहार रहा था ।
इतने में सारिका आ गई , एकाएक चिल्ला पड़ी । कहने लगी, अरे दहलीज तक कैसे तुम आ गयि । कुछ कहना था , तो आवाज लगाता ।
मिस्री रामु बेहद गमगीन होकर बोला , मालकिन हम मिस्री के मेहनत और कारीगरी ही इक दिन ईंट गारे से महल बन जाते ।जिस हाथों की कलाकृति की भूरी भूरी प्रशंसा होती ,उन मिस्री मजदूर को उसे निहारने तक की इजाजत भी नहीं ।
माफ कर दीजिए मालिक मैं अपना औकात भूल गया था...।

बाबा तुंगनाथ

संस्मरण ( यात्रा)

बाबा तुंगनाथ ओढरदानी के दर्शन को निकल पड़ी पति संग ।कुछ घंटे उपरांत हम बादलों के आगोश में थे।नयनाभिराम दृश्यों का अवलोकन करते हुए तथा 
गगनचुम्बी पर्वत मालाओं को चीरते हुए हम पहुँच चुके 
थे, दुगलबिट्टा गेस्ट हाउस में । अप्रतिम प्राकृतिक 
सौंदर्य से लबालव हमारा विश्राम गृह ,वहाँ के अनुपम दृश्य ने हमें सम्मोहित कर दिया ।उस रोमांच को महसूस तो हमने कर लिया पर लिखने के लिए शब्द नहीं मिल 
रहा कल कल झरनों की धुन कानों में मिश्री घोल रही थी,
बाँझ बुराँस और रंग बिरंगे फूलों से भरी घाटी का रूप अलौकिक है।चूँकि दुगलबिट्टा के पहले से ही सैन्चुरी एरिया शुरू हो जाता है -इसलिए यहाँ बिजली की स
सुविथा नहीं पर,सोलर ऊर्जा के द्वारा प्रकाशित होते गेह।
विश्राम गृह में चिमनी का भी प्रबंध था ।चौकी दार ने गर्म
पानी आदि का व्यस्था संभाल लिया ।गाँव के भोले पहाड़ी बहुत ही नेक और कोमल हृदय के होते हैं ।इनके 
सेवा भाव से मन प्रसन्न हो गया । 
अगले सुबह बाबा के दर्शन के लिए चोपता पहँच गई 
पति संग, कुछ स्टाफ हमारे साथ हो लिए थे ।
चोपता से तुंगनाथ भोले बाबा के दर्शन के लिए हमने 
घोड़े ले लिए ।सूर्योदय के रश्मियों से घाटी और निखरी 
निखरी दिख रही थी ।मौसम भी बिलकुल साफ था सो 
प्रकृति के अलौकिक रूप को नैनों ने खूब पान किया ।
हृदय आनंद से विभोर हो रहा था।वैसे तो हम यदा कदा 
पहाड़ों की सैर पर निकलते ही रहते हैं ।हर्सिल की यादें 
अभी भी ताजा है जेहन में,  परंतु चोपता की अपनी 
अलग खूबसूरती है ।
हमने स्वीटजरलैन्ड तो नहीं देखा पर कहते हैं चोपता मिनी स्वीटजरलैन्ड है,सचमुच इस सौन्दर्य के आगे काश्मीर भी फीका है ।
 तुंगनाथ बाबा एक दम टाॅप पर विराजमान हैं ।अगर मौसम साफ है तो केदारनाथ,  बद्रीनाथ , मदमहेश्वर , 
गंगोत्री,  यमुनोत्री के ग्लेसियर बिलकुल पास दिखता है।
हमने भक्ति भाव से शिवपूजन किया ।बहुत सारी फोटो ग्राफी की ।आते वक्त हम टुरिष्ट बन प्रकृति का आनंद 
लेते हुए जगह जगह बुग्याल (हरी दूब से ढकी घाटी ) में ,
झरने के किनारे फोटोग्राफी करते हुए अपने गन्तव्य
रूद्रप्रयाग की ओर निकल पड़े ।सचमुच उत्तराखंड को 
धरती का स्वर्ग कहें तो इसमें कोई  अतिश्योक्ति नहीं ।
देवताओं के निवास और प्रकृति के सुन्दरता से भरी अलौकिक दृश्य प्रचुरता से विराजमान है...।🌹
 उषा झा स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

  


Tuesday 16 June 2020

दुख की दवा करे कोई

2122  1212  22/112
रदीफ - करे कोई
काफिया - आ
मिसरा - मेरे दुख की दवा करे कोई।
2122      1212     22
रंजो गम जो  कहा करे कोई ।
पीर उसकी सहा करे कोई ।

ताश सी जिन्दगी नहीं बिखरे।
मेरे दुख की दवा करे कोई ।।

मेंहदी हाथ में रची ही थी ।
मांग में खूँ भरा  करे कोई  ।।

फूल भी साख से बिछुड़ रोये ।
बाग उजड़े दगा करे कोई  ।

प्रेम आघात सह न पाते अब ।
राह  सजदा सदा  करे कोई ।।

काश टूटे न दिल किसी का भी।
प्यार पर बंदिशे  खफ़ा करे कोई

भेद अब ऊच नीच में क्यों है?
रीत ऐसी दफा करे कोई  ।।

रात तम की हटे जगत से अब ।
हो अमन बस वफा करे कोई  ।। 

नैन मोती झरे न जग वालो  ।
नूर माँ का विदा  करे कोई  ।।

 उषा झा देहरादून
सादर समी

उल्फत की रैन

काफिया - आम
रदीफ - हो जाए
1222     1222      1222         1222

  तुम्हारे संग बीते  खुशनुमा   यह शाम   हो   जाए  ।
 बिछुड़ कर भी मधुर पलछिन नहीं गुमनाम  हो जाए।
      
चली चर्चा  जभी से ईश्क  की, हर कान चौकन्ने    ।
लगी है  भीड़  मजनूँ की  उन्हें  पैगाम  हो  जाए  ।।

उन्हें उल्फ़त भरी  हर  रैन  की  चाहत सदा रहती  ।
चलाए नैन से  बस तीर  दिल  नीलाम   हो   जाए  ।।

अगर दिलबर  तुम्हारा प्यार हो सच्चा मिटा दूँ जाँ  ।।
तुम्हें कुर्बां  किया तन मन  जरा सा नाम  हो   जाए ।।

भुलाए भी नहीं वो वक्त   बिसराता   हृदय   अंकित ।
सुहाने दिन करे पुलकित,नवल उर धाम  हो जाए ।।

पहर बीते नहीं आयी खबर उनकी  सशंकित मन ।
पवन संदेश दो पिय का   तभी  विश्राम  हो  जाये  ।।

बने सेवक निभाना ही पड़े हर  फर्ज  है  सबको ।।     
निखरता  सोच जब मनका ,शुचित आवाम हो जाए  ।।

विरह भारी  चिकित्सक पिय  उषा बैचेन रहती है ।
जगत  विपदा टले अब तो उन्हें  आराम हो जाए ।।
उषा झा देहरादून

मिलन की प्यास

रदीफ - नहीं
काफिया- आस
मापनी' 22  22  22  22   22  22 2
चाहत का मुझको कोई तोआभास नहीं।
मुझसे प्यार जताता लेकिन है विश्वास नहीं।

सर से पाँव तलक लगता वो झूठ पुलिन्दा ।
चालू सा दिखता इंसान लगे वो खास नहीं

कद्र करो सबकी पर हद से ज्यादा क्यों झुकना
भूलो मत ये साथी हैं तेरे पर दास नहीं।

रिश्ते सूखे फूलों सा खुशबू ही गायब जब ।
फिर नैनों में पहले सा मिलने की प्यास नहीं।

दोस्ती में तो सच्चाई ही नव आयाम गढे ।
यार कुटिल हो तो आघात लगे उर रास नहीं  ।।
    
पुष्प कली खिलता मन आँगन में गर पास सजन।
सबके साजन संग सदा जाए वनवास नहीं  ।

उम्मीद उषा उर में  खुशियाँ  देखो   छलके है ।
प्रियतम दूर दुखी दिल भाये अब  मधुमास नहीं
उषा झा देहरादून
अरदास , मधूमास , विश्वास, उपहास

Sunday 14 June 2020

कामना अभिसार की

धुन -इक रास्ता है जिन्दगी जो थम गये तो कुछ नहीं ।

रदीफ - तेरा
काफिया आ
2212  2212   2212  2212
दीवानगी हद से बढी है संग अब भाता तेरा ।
सावन अगन दिल में बढाए फासला खलता तेरा ।।

दर्पण दिखाता नूर रौनक है बढी पैगाम सुन ।
पट खोलती पथ देखती, दिल जो करे सजदा तेरा।।

साथी बिना जीवन अधूरा अब सफर कटता नहीं ।
है खूबसूरत जिन्दगी बस साथ जो मिलता तेरा ।।

दुश्वारियाँ भी खत्म मनके पास जब मनमीत हो।
हो निशि घनेरी मन निडर कर थाम पग बढता तेरा ।।

हो खत्म रोगों का समर ये दूरिया भाती नहीं ।।
उर मुस्कुराता जब हिया संदेश शुचि सुनता तेरा।।

बस खत्म हो मेरी परीक्षा कामना अभिसार के ।
जीवन भँवर मिल पार करना आस दिल करता तेरा ।।

आँगन उषा कबसे खड़ी नव रंग में भरना तुझे ।
स्वर्णिम पहर नूतन सवेरा द्रार पर आया तेरा ।।
उषा झा देहरादून

Monday 25 May 2020

चिर सुहाग हो सदा

विधा- गजल
काफिया- आते
रदीफ- तुम्हें
मापनी- 2122   2122  2122  212

मांग लाई देव से हर जन्म के नाते  तुम्हें ।
साथ जीना साथ मरना राज बतलाते तुम्हें ।।

ईश भी चाहे अलग करना, वही युग युग अड़ी।
सत्य मेरा प्रेम, प्रतिपल शुचि हृदय पाते तुम्हें ।

मांग की लाली सदा दमके, यही वर मांगती।
मेंहदी   में अक्स तेरा, नूर नव भाते तुम्हें ।

सात बंधन से बँधी रिश्ता फले फूले सजन।
दो जहाँ का संग प्रियतम, सत्य समझाते तुम्हें।

हाथ कंगन से भरी हो, पाँव पायल नित बजे।।
प्राण त्यज हम मृत्यु से भी छीनकर लाते तुम्हें

वर्ष   बीते  पर  नहीं   बीती   हमारी  मान्यता ।
पूजती  बड़ को  अमर  सौभाग्य  के  वास्ते  तुम्हें ।।

चाँद सा चमके पिया यश कृति, हुई सच कामना ।
 सावित्री सी है  उषा उर  आर्द   पिघलाते  तुम्हें ।।

उषा झा स्वरचित
देहरादून उत्तराखंड

Sunday 24 May 2020

बासंती ऋतु आई

 लाली छिटकी गगन पे , सुर्ख उषा है मुग्ध ।
सुषुप्त जीव में हलचल,  छायी नेहिल गंध ।।

रूप सुहावन दृग लगे , लगते निर्मल भोर ।
पंछी कलरव वन करे,   झूम रहे मन मोर ।।

 झांकती  खिडकी से किरण ,,पुलक रहे हैं गात ।
रश्मि डाल पर छिटकती , स्वर्णिम लगते  पात।।

मन का बिरवा पल्लवित, पुष्पित ठूँठ पलास।
मधुकर भी मँडरा रहे, प्रीतम लगते खास  ।।

पुरवाई  ऐसी  चली , महके चंदन गात  ।
विहग वृंद मधुराग मय,वृक्ष सजे नव पात।।

नेह भरे ऋतु राज मन ,पोर पोर  रंगीन ।
बासंती मौसम हुआ, सब है प्रेम अधीन  ।।

सिंन्दूरी सेमल भई , अमराई मदहोश   ।
खग फिदा गुलमोहर पर, समा गया आगोश ।।

दुल्हन सम वसुधा दिखे , पिय बसंत है साथ ।
फूली सरसों खेत में , ज्यूँ हल्दी हो हाथ ।।

फागुन मन भरमा रहे , हुए बावरे नैन ।
डाल रहे डोरे पिया , बोले मधुरिम बैन ।।

लाल चुनरिया ओढ के , आया है चितचोर ।
सुर्ख बुँरास झूम रहा , मलय करे हिलोर ।।

पलास भी हरिया गया , आया जभी बसंत  ।
लता कूँज में झूमती,  आये  हो ज्यूँ कंत ।।

कानों में  रस घोलती , फागुन के अब गीत ।
ठोल मंजीरा दिल को , प्रतिपल  लेते  जीत ।।

जीवन की निधि प्रेम है,  दिल में भरो अपार ।
 मन आंगन पुष्पित करे,  प्रेम मई संसार ।।



उषा झा स्वरचित 

 

Tuesday 25 February 2020

शिव उमा विवाह

तप में उमा, मिले त्रिपुरारी  ।
 त्याग अन्न जल दी कोमारी ।।

 इकलौती थी सुता पार्वती ।
 हठी अति, मन की बस ठानती ।।
  लाडली वो पर्वत राज की ।
 वन में रहती, राज त्याग की ।।
 पुत्री गौरी  थी   सुकुमारी ।
 तप में उमा, मिले त्रिपुरारी ।।

  तप में बरसों जब बीत गए ।
  शंभू उमा पर  प्रसन्न  हुए ।।
  बोले वर मांग लो बालिके ।
  गौरी तो आपकी साधिके ।
  बनूँ संगिनी, चाह तुम्हारी ।
  सदियों से आपकी पुजारी
  तप में उमा, मिले त्रिपुरारी ।।

 मान गए महादेव कहना  ।
 शिव दुल्हा बन उतरे अँगना  ।।
 भूत पिशाच व संग देव थे ,
सर्प माल तन भस्म रमे थे ।।
 लगते अद्भुत त्रिनेत्र धारी ।
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।

मैना वर को देख डराई ।
नहीं चाहिए शंभु जमाई ।
मात पिता  फूट फूट रोये
बेटी उमा ने भाग्य खोये ।
शंभु पिया जन्मों के मेरे,
करो ब्याह की माँ तैयारी
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।

तीनों लोकों के स्वामी की,
हो रही अलौकिक विवाह थी  ।।
भाँति भाँति रूप लिए गण थे।
गौरी   शिव  प्रेम में  लीन थे  ।।
अद्भुत दृश्य नहीं  संसारी ।।
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।
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भरा आंगन जिया रोता

विषय :- विरह गीत
रस :- श्रृंगार ( वियोग )
छंद/बहर :- विजात छंद

भरा आंगन,  जिया रोता
हृदय प्रीतम बसा होता

मलय अब प्राण दहकाये
पिया की याद तड़पाये
सभी से चुप लगा देता
नहीं खत में बता देता

विरह का बीज ही बोता
भरा आंगन, जिया रोता

सजा कर रूप मत वाला
रहा  फिर भी बदन काला
सभी से पीर बस पाऊँ
पिया तुम बिन न मर जाऊँ

सजन अब सेज ना सोता
भरा आंगन, जिया रोता ।।

खनकती चूड़िया देखो
बजे  शहनाइयाँ देखो
जले हैं तन बदन देखो
लगी है मन में अगन देखो ।

 तमस में मारती गोता  ।
भरा आंगन,जिया रोता।।

बिना साथी तरस जाता
अकेले कौन जी पाता
सजन अब बोझ ये जीवन
तुम्हीं को ढूंढता है मन

गगन पर मन धरा होता  ।
भरा आंगन, जिया रोता ।।
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पिय बिन हृदय करे क्रन्दन

बहर का नाम :- बहरे - हजज मुसद्दस महजूफ
वज़्न :- 1222”1222”122
आर्कन :- तीन अरकान ( मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन )
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विषय :- विरह गीत
रस :- श्रृंगार ( वियोग )
छंद/बहर :- विजात छंद

भरा आँगन जिया रोता,
हृदय प्रीतम बसा होता।

मलय अब तन जलाता है,
नयन भी जल बहाता है।
सभी से पीर बस पाऊँ,
पिया तुम बिन न मर जाऊँ।

नयन कजरा धुला होता,
भरा आँगन, जिया रोता।

सखी गजरा सजाती है,
अधर लाली लगाती है।
सजाया रूप मत वाला,
रहा फिर भी बदन काला।

सजन अब सेज ना सोता
भरा आँगन जिया रोता ।

जले है तन बदन देखो,
लगी मन में अगन देखो।
सजन सावन रुलाता है,
नहीं मन चैन पाता है।

सजन अब सेज ना सोता ,
भरा आँगन,जिया रोता।

बिना साथी तरस जाता,
अकेले कौन जी पाता।
सजन ये बोझ जीवन है,
ह्रदय में सिर्फ क्रन्दन है।

विरह के बीज ही बोता,
भरा आँगन जिया रोता।
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Monday 24 February 2020

शिव पार्वती विवाह

पार्वती विवाह

विधा- गीतिका छंद
2122     2122    2122   212
मात मैना रो रही बेटी चुनी जोगी पिया ।
हार दी क्यों पार्वती इस शिव भिखारी ही जिया।।

माँ कुँआरी मैं रहूँ शिव पति नहीं पाँऊ अगर ।
साथ मेरा सात जन्मों का वही मेरे प्राण उर ।

नाथ शंकर हैं जगत के भूल को करते क्षमा ।
भू गरल पीकर सदाशिव भष्म में रहते रमा ।

 राजकन्या को पिया जोगी मिला है देखकर।
 मात मैना का कलेजा भी हिला है देखकर ।।

 फिर रही मैया बिलखती बाप का दिल रो रहा
इक भँगेड़ी संग में बेटी का परिणय हो रहा

 देव भी समझा रहे माँ ब्याह को राजी नहीं
घूमते वन-वन भिखारी को सुता देनी नहीं

 साँप बिच्छू, सोहें तन पर भूत साथी क्या बचा
मस्त गाँजे में है दूल्हा हे विधाता क्या रचा।

भार बेटी है नहीं ये शब्द माँ ने जब कहा ।
प्राण में शिव ही बसे हैं ये रमा ने तब कहा।।

 माँ कुँआरी ही रहूँगी या वरूँ शिवनाथ को।।
मम ह्रदय में वो बसे हैं नित झुकाती माथ को ।।

मान माँ पितु फिर गये बारात सज-धज कर चढ़ी।
देवता  सँग सँग चलें ये क्या सुहानी है घड़ी।।

है अलौकिक दृश्य नंदी पर जो दूल्हा मस्त है।
चाँद तारे नाचते हर देवता भी व्यस्त है  ।।


उषा झा (स्वरचित )
देहरादून (उत्तराखंड

Monday 17 February 2020

उन बिन नहीं नैनों की ज्योति

1222,    1222,  1222,    1222
 कभी हँसती नहीं होती कभी रोती नहीं होती ।
न पलता प्यार जो दिल में तो यूँ खोती नहीं होती।

तुम्हीं बोलो तुम्हारे बिन जिया जाए पिया कैसै।
नयन में ख्वाब  कोई भी बोती  नहीं  होती ।

विना तेरे अधूरी हूँ  जो पूरी मैं  होती  तो इस।
जुदाई में मिलन का हार यूँ पो ती नहीं होती।

 जो मेरा प्यार जानेमन अगर सच्चा नहीं होता।
बिछुड़कर इस तरह तन्हा सफ़र ढोती नहीं होती।

 समन्दर जैसी गहराई मुहब्बत में न होती जो।
तो फिर ये बूँद आँसू की कभी मोती नहीं होती।

 तुम्हीं को ढूँढ़ने जोगन बनी फिरती न गलियों में।
अगर इस मन के मन्दिर में जली जोती नहीं होती।

 हरिक शब तेरे विन मैने गुज़ारी तारे गिन गिन कर।
 कहाँ तब नींद आती संग जब सो ती नहीं होती ।

 कहीं मधुमास आये औ सजन यूँ ही चला जाये।
जो मन प्यासा नहीं होता धरा धो ती नहीं होती।

 नजर पथरा गई  है आस  में  तेरे  लिए  साजन ।
 अमामस को कभी पिय चाँद से दोस्ती नहीं होती।

Sunday 16 February 2020

प्रणय मिलन


विधा - गीतिका    छंद
2122   2122   2122   212
लाज की चुनरी नहीं अब मैं हटाऊँ औ पिया ।
खुल न जाए भेद, पट से मुख छुपाऊँ औ पिया ।।

छेड़ जाते  तार उर के   दो  नयन  तेरे  सजन ।
स्वप्न नित नव नव सजाती क्या बताऊँ औ पिया।।

जुल्फ जब मुख चूमता एक टक फिर देखती ।
प्रीत मुखरित हो रही कैसे ,जताऊँ औ पिया ।।

तोड़ दो तट बंध  सारे  चाह दिल  में  है  यही ।
वार दूँ तन मन, नहीं तुमको सताऊँ औ पिया ।

चेतना भी लुप्त मन की गात अब निस्तेज है ।
कामना दिल में मिलन की तन सजाऊँ औ पिया ।

प्रेम से यह जग बना है देव भी   हारे   हृदय ।
चिर मिलन बिन हम अधूरे क्या सुनाऊँ औ पिया।।

मद भरी यह शाम आई गात पुलकित हो रहा ।
खोल मन के द्वार सिमटी सी लजाऊँ औ पिया ।

होश क्यों गुम हो रहा है अधखुले मेरे पलक ।
श्याम पर राधा दिवानी दिल लुटाऊँ औ पिया ।।

प्रीति की ये रीति से गढ़ नव जगत आधार तुम ।
बाँध लो भुज बंध में सज धज लुभाऊँ औ पिया ।।

प्रेम तब परिपूर्ण होता जब मिलन की बात हो।
रागिनी मृदु बैन निशि दिन फिर सुनाऊँ औ पिया।

प्रीत तो उपहार, जीवन को मिला जग जीत लो ।
आस से पुष्पित हृदय, कितना दिखाऊँ औ पिया ।।

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मैं उषा झा देहरादून 

प्रणय निवेदन


विधा-गीत -लावणी छंद
 16 /14 पर यति चरणांत 2 


नैनों में तेरे ही सपने , दे दी दिल तुमको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना, नहीं दूर तुमसे रहना ।।

दिवस खास देखो आये हैं, प्रेम निवेदन मैं करती ।
चलें दूर हो जहाँ सितारे,तुम से ही धड़कन चलती।।
नीले अंबर के नीचे मन,भर बातें करनी तुमसे ।
तेरी ही दुल्हन बनना है, कसमे खाती हूँ तुमसे ।। 
सजन निभाना रीति प्रीति की, नहीं किसी से तुम डरना ।
जीवन डगर संग ही चलना, नहीं दूर तुमसे रहना ।।

मिले जिन्दगी में लोग कई, रही उदासीन प्रीत से ।
तुम्हें देखते ही दिल धड़का, तुम जुड़े हुए अतीत से ।
स्वप्न नैन में तैर रहे हैं , तुम चढ़ कर घोड़ी आए ।
अनुबंध करो जुदा न होंगे , बस सच सपने हो जाए।।
मिले सनम गम या खुशी हमें,अब तो मिलकर है सहना।
जीवन डगर संग ही चलना , नहीं दूर तुमसे रहना ।।

सार्थकता तब प्रेम दिवस की , प्रीत स्वार्थ से परे रहे ।
जग में अपना प्यार अमर हो , सत्य प्रेम बस टिके रहे ।
इतिहास रचे हम दीवाने , प्रेम कहानी याद करे ।
कायनात में रुह की दांस्ता,इक इबारत लिखा करे ।
मन मीत एक विनती सुन लो , सदैव दिल में ही रखना ।

नैनों में तेरे ही सपने ,दे दी दिल तुझको सजना ।
जीवन डगर संग ही चलना,नहीं दूर तुमसे रहना ।।
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मैं उषा झा देहरादून 

Sunday 9 February 2020

अधीर मन प्रीत की राहों में

साधना 

विधा- मुक्तक 
कब निकल पड़ी जाने कैसे , सजन प्रीत की राहों में ।
सही लौट कर आना मुश्किल, मिले खार ही राहों में।
पिया विलय अस्तित्व किया है, जब से तुमसे नैन लड़े 
भंग नहीं हो प्रेम तपस्या,,पीर भरे दिल आहों में ।।

लगन तुम्हें पाने की दिल में ,मैं  करूँ अर्चना तेरी ।
मिले नेहिल प्रसाद तुम्हारा ,अब करूँ साधना तेरी ।
बनी प्रेम में मीरा जोगन, बिन प्रिय जग सूना सूना ।।
बूँद अमृत की छलका दो अब , बस सुनों प्रार्थना मेरी।

रोम-रोम में वो बसते हैं  , हिया लगी साँवरिया से।
ढूँढ रहें है नयना तुझको, दूरी क्यों बावरिया से ।।
लक्ष्य तुम्हीं  जीवन के मेरे ,तन मन अर्पण सजना को ।
दर -दर भटक रही हूँ निशि दिन ,रसना बहे गुजरिया से।

झर झर बहते नयन बावरे, धीर खो रहे हैं प्यारे ।
भटक रहे मन सघन विटप में , गिन रहे नैन हैं तारे।।
पिंजरें तोड़ उड़ी है मैना, तुम्हें  ढूँढने को निकली।
कहीं साँवरे जब नहीं मिले, मन अधीर भी हैं हारे  ।।

उषा झा देहरादून

नकली रिश्ते

हृदय के भाव पढ़े न कोई , आहत मन इन बातों से ।
रिश्ते नकली यूँ  फिसल रहे,  बूँद कमल के पातों से ।

राजदार जो भी बनते है ,वही हमें  घायल करते ।
हृदय विहीन समाज  बेदर्द, दर्द देकर मन न भरते ।
कोमल मन और व्यथित नहीं हो,भेद छुपाते हम सबसे ।
 छुपे तम जीवन के अपने , इन अंधेरी रातों से ।
हृदय की बात पढ़े न कोई, आहत मन इन बातों से ।।

 नयनों में उसके  स्वप्न सजे , चाहत के जो पंख लगे ।
मन भर कुँलाचे भरी वितान में, दिए दर्द बन कौन सगे?
टूट पंख उसके गए, उठी,, विश्वास  हर  इसांनो से  ।।
मन विहग निशि दिन किलोल करे,दुखी बहुत वह घातों से ।
हृदय की बात पढ़े न कोई,  आहत मन इन बातों से  ।।

सुनो #सुजाता  कहना मानो, बंधन उर के तुम खोलो ।
छोड़ परवाह अब लोगों की ,क्यों तुम लफ्जों को  तोलो ।
झाँसी की रानी बन जाओ,खुद को अब तो पहचानों ।
मेधा से स्त्री परिपूर्ण सभी , पन्ने इतिहास के  खोलो ।
अपने चश्मे से देखा कर , हो गर्वित स्त्री जातों से ।।

हृदय की बात पढ़ ले चाहे ,आहत क्यों इन बातों से ?
रिश्ते नकली यूँ  फिसल रहे,बूँद कमल के पातों से ।।



 


Saturday 8 February 2020

ऋतु बासंती उदास


विधा : कीर्ति छंद(वर्णिक)
दशाक्षर
(सगण)×3 + गुरु
112 112 112 2
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112   112   112   2
मधुमास पिया बिन फीका ।
मन घायल है दिन फीका ।।
पलकें बस भींग रही है ।
तुमको दृग ढूंढ रही है ।।

जब से तुम दूर गये हो ।
तबसे मन पीर भरे हो ।।
हर रैन उदास लगे हैं ।
सब रंग उमंग भगे हैं ।।

बिन साजन आँगन सूनी ।
विरहा डँसती अब दूनी ।।
खुशियाँ तुम संग गई है ।
यह जीवन व्यर्थ हुई है ।।

उर प्रेम करे तुझको है ।
यह रोग लगे मुझको है ।।
मनभावन ये ऋतु आई ।
वह तो उर प्यास बढाई ।।

रजनी सजती सजना से ।
खिलती कलियाँ भँवरा से ।।
सुन लो मन मीत तुम्हीं हो ।
मन के सुख शान्ति तुम्हीं हो ।।

लगती यह मौसम गाली ।
बिन साजन के सब खाली।।
बिन प्रीतम वर्ष अधूरे ।
कर दो सपने सब पूरे ।।

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उषा झा देहरादून

Tuesday 4 February 2020

करें नष्ट आड़म्बर

विथा-  मुक्तक 

बताकर धर्म का पैगम्बर,
क्यो दुखा रहे तुम  दिल उनके ।
बनाकर खिलौना नारी को, 
क्यो खेल रहे जीवन उनके ।
 किसी कौम का नहीं दस्तूर
 ,बता ग्रंथ में  लिखा कहाँ  है?
बीच राह में छोड़  अकेले
क्यो तोड  रहे अब दिल उनके ।

आड धर्म की में जो छुप के, 
वार मनुजता  पर करते हो।
निहत्थे लाचार के सिर वो
पत्थर से फोड़ा करते हो  ।
नापाक इन्सानियत को,क्यों  
अब शर्मसार करते दुष्टों  ।
बंदगी खुदा की करते कैसी 
शोणित से होली  करते हो।

अंधविश्वास की आड़ धर्म , 
को बना दिए हथियार सभी ।
ज्यादा रखते ,स्त्री पर, हद से
 बंदिश के पहरेदार सभी ।
कठपुतली नहीं  औरते हैं
इंसान जागती  जीती वो
अवसर उनको दो फैलाओ, 
तुम भरो ज्ञान उजियार सभी।।

बाहर निकालें रूढ़िवादी, 
धर्मो  के ख्यालात पुराने ।
है बेटी ही  जल दाता, सुन लो , 
तज दो मानसिकता पुराने ।
जानो जग वालो! बिटिया ही 
अंत करेगी  वह ही  सेवा ।
गौरवान्वित करेगी तुमको, 
पूर्ण करेगी सपन सुहाने ।।

उषा झा 
देहरादून

Monday 3 February 2020

कलियाँ चटकी गुलशन में

जब यौवन की कलियाँ चटकीं,अलि मकरंद की चाह में।
मलय- पवन भी होश उड़ाता , छाता नशा निंगाह में ।
आवारा बादल घूम रहा , नेह बूँद जो बरस रही ।
मचल दिवाने गये रूप के, बैचेन दिल है आह में ।

गुलशन की है शोभा न्यारी, मन मुस्काया मेरा है ।
पुष्प खिले हैं रंग- बिरंगे, मधुप जमाया डेरा है ।।
सांकल उर की खोल,मधुमास, सहसा भीतर घुस आया ।
प्रीति- रीति तज स्वप्न लोक में, हर दिन नया सवेरा है ।

पलें ख्वाहिशें, नयनों में अब , जीवन भर पी संग रहे ।
तृषित- हृदय तब,तृप्ति मिले जब ,भरे प्रेम मन रंग रहे ।।
भागी तृष्णा, गया हृदय मरु, सुवासित!देह परदेशी ।
पुलकित रोम-रोम , फूट गए, कोंपल रसना अंग रहे ।।
 
जाने कैसे कब निकल पड़ी,सजन प्रीत की राहों  में ।
लौट कर आना मुश्किल सही ,मिले खार ही  राहों में ।
किया विलय अस्तित्व पिया है, जभी नैन तुम संग मिले ।
 भंग न हो प्रेम तपस्या दम,,  तो  छुटे  नहीं  आहों  में  ।।
   
उषा झा देहरादून

शूल यौवन के पथ

विधा-  मुक्तक 

 देखते ही उनको मेरा बुरा  हाल हुआ।
मन घबराया मेरा ,दिल भी बेहाल हुआ ।
अब कहाँ धड़कनें भी,कहना मेरा माने।
साँसों की तेज गति से बैचेन हाल  हुआ ।।

यौवन की दहलीज चढ़ कर करते सब भूल ।
रूप यौवन के जाल में नष्ट जीवन फूल ।
धड़क धड़क कर धड़कनें  ,छीने जीवन मूल।
बहकते कदम ऐसे बिछें  हों पथ पर शूल ।।

कब मांगने से मिलती मुहब्बत है किसी को ।
रब की मर्जी से मिले मुहब्बत है सभी को ।।
रूह की रौशनी से सजदा सच्ची मुहब्बत ।
मन में बसाकर मूरत पूजता है तुझी को ।।

प्यार व्यापार बन गया, ठगते सब किसी को ।
प्यार का दिखावा करे, दे घात हर किसी को ।।
नेह लुटा के पता चले ,कितना सुकून मिले ।
दुख में जो साथ निभा दे, मिले प्यार उसी को ।।

उषा झा देहरादून

Friday 31 January 2020

नम चादरिया एहसास की

विथा गीत - 16/ 14

नम चदरिया  एहसासों की, चाँदनी रैन उदास है ।
नैन पिया बिन हुए बावरे,बिखर गयी सभी आस है।

कानन पुष्पित ऋतु राज खड़े, मदन रति को संग लिए।
धड़क रही है जवां धड़कनें,नयनों मे नव स्वप्न लिए।
फूली सरसों अबआशा की, पोर-पोर में नेह भरी ।
तन मन अरुणाई वासंती ,प्रकृति हुई है हरी भरी ।।
बाट जोहती मैं विरहन बन, फीका लगे मधुमास है।
नम चदरिया एहसासों की...।।

पीले -श्वेत पहन कर अंबर, निकल रही सभी छोरियाँ ।
कोकिल-कंठ सुधा बरसे हैं , मँजीरा लेकर टोलियाँ  ।
राग-अनुराग पले हृदय में , बसंत उतरे अब अँगना ।
लगे सुहावन दृश्य सभी अब , उन्मादित सजनी सजना।
संग पिया अहो भाग उनके,मन में हास -परिहास है।
नम चदरिया एहसासों की...

इन्द्रधनु जब गगन में छाया ,चहके हृदय खग वृन्द के ।
मन- आंगन भी खिला खिला है, बाण चले कामदेव के।
रंग बिरंगे स्वप्न नयन में  , अब प्रियतम के भाग जगे ।
आये द्वार मधुमास मधुरिम ,प्यास प्रीत की नैन लगे हैं ।
निशि- दिन नैना अब बहते हैं, प्रीतम नहीं बहुपाश हैं।
नम चदरिया एहसासों  ....

छटा निराली  सभी ओर है, सौरभ से सब सुमन लदें।
घायल -उर है, मदन चाप से, तोड़ दिए भ्रमर सब हदें।
रंग उमंग विहीन बिना तुम , आकुल मन संताप भरे ।
आना जल्दी तुम परदेशी , बसंत तब उल्लास भरे।।
बैरी प्रीतम भूल गए जब, हृदय बहुत ही निराश है।

नम चदिरया एहसासों की , चाँदनी रैन उदास है ।
 नैन पिया बिन हुए बावरे ,बिखर रहे सब आस हैं।

उषा झा देहरादून 

Wednesday 29 January 2020

समृद्ध हमारा गणतंत्र

#दोहे छंद
🇮🇳गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुशुभकामनाएँ 🇮🇳

देश आजाद हो गया , हुए वीर कुर्बान ।
देश शक्ति सम्पन्न हो, हर दिल के अरमान
आजाद हिन्द स्वप्न नव, बने नये कानून ।
भारतीय हर्षित हुए ,  मन में बहुत जुनून ।।

सैनिक के कठिन तप अब , रहे सदा आबाद ।
फर्ज निभाना है हमें, देश न हो बरबाद ।।
नेता अंधे स्वार्थ में , बने फ़िरक़ा परस्त ।
भारत के टुकड़े करें, जन जन के हक जप्त ।

वोट की राजनीति में,  फँसे सभी मासूम ।
जाति पाति विष बो रहे, हो सब को मालूम ।।
मातु भारती रो रही , जब जब बहते रक्त ।।
लाज नित्य ही लुट रही , क्यों सरकार असक्त ।।

सदियों भारत विश्व गुरु , अद्भुत है इतिहास ।
राम कृष्ण की ये धरा, यहाँ देव का वास ।।
गौतम महावीर लिए , युग पुरूष अवतार ।
शीश हिमालय चुम रहा , बहे गंग की धार।

संस्कृति सभी अक्षुण  रहे ,बढ़े  देश का मान ।
काम सभी ऐसा करें , हो सबको अभिमान ।।
लोकप्रिय कानून बने , संतुलित संविधान ।
सबको समान हक मिले, रहे दीन मुख  गान ।

विश्व में भारत का  ही , समृद्ध हैं गणतंत्र ।
कोई कमजोर न करें , कभी देश का तंत्र ।।
शान भारती की बढ़े , हो मुख पर मुस्कान ।
राष्ट्र अखंड! तभी सफल , शहीद के बलिदान ।

मीठी तुतली बोल से,   गा रहे राष्ट्र  गीत ।
देश फक्र उस पर करे , हृदय लिए वो जीत ।।
देश सुरक्षित हाथ में , वही देश के नींव ।
बच्चे माँ की लाज है , करते नहीं अजीव ।

उषा झा स्वरचित
उषा झा देहरादून 

सरस्वती वंदना


सकल जगत सुबुद्धि प्रदायिनी , नमामि माँ सरस्वती ।
चीर तमस दो ज्ञान दाहिनी ,  मूढ़ मति बने ज्ञानवती ।
शुचित माँ कलुषित-हृदय भी हों, सर्वत्र, गंगा ज्ञान बहे ।।
सत्य, दंभ से नहीं पराजित , ईर्ष्या द्वेष न हृदय रहे ।।

दूषित सोच का प्रादुर्भाव मम , उर हो कभी नहीं माँ 
चलूँ सुपथ पे, भटकूँ कहीं ना! वर दो हंसवाहिनी माँ ।।
हो प्रेम दया करुणा दिल में ,खत्म भ्रष्ट मनोवृत्ति हो ।
यत्र-तत्र समष्टि वसुन्धरा , मानव कोई न व्यथित हो ।।

विषय विकारों में है लिप्त मन निर्मल शुभ विचार दो ।
वचन झरे,मुख से मीठे ही , कोकिल कंठ दे तार दो ।।
हो अन्याय न संग किसी के, सब तृषा हिय की नष्ट हो ।
वर दे कमल सिंहासिनी माँ! चीर प्रकृति का मंजुल हो ।।

अभिशप्त न हो कोई निर्धन , शिक्षा सबको मुफ्त मिले।
कुरीतियों के प्रतिकार हेतु , यह लेखनी चलती चले ।।
भाव अनुपम विद्यादायनी, रचती रहे यह तूलिका  ।
छंद -सृजन हों सदा पुरुष्कृत, मात दान दे विद्या का ।।

उषा झा देहरादून 

वीर तू उठा मशाल


विधा- पंञ्च चामर छंद

 121  212   121   212   121  2
निसार प्राण मातृभूमि को, लहू पुकारती ।।
निगाह दुष्ट, राष्ट्र पे पड़े न ! माँ कराहती ।।
बिना प्रयास के बढ़े न स्वाभिमान देश की ।
सलाम राष्ट्र प्रेम! शूर वीर भेंट प्राण की ।।

डटे रहे शूर वीर छद्म युद्ध देख वो डरे नहीं ।
झुके न मान देश का शहीद हो गए वहीं ।।
सुखी रहे सभी, दुखी न भारती मिले कभी
शहीद देश के लिए मिटे,न भूलना सभी ।

घटे न मान मातु का उठा कृपाण तू जरा ।
करो विनाश शत्रु का रहे सुखी वसुन्धरा  ।।
उठा मशाल , नाश दुष्ट का, करे प्रवीर है।
सुनो गुहार मातु की, बहा  लहू, अधीर है ।।

दिखा दिया शहीद राह देश को, सलाम है ।
उबाल रक्त का घटे नहीं, हिया हुलास है  ।।
लगे न दाग मातु पे  झुका न शीश  वीर तू ।
छुपे न दुष्ट एक भी करो तलाश  वीर  तू ।

गुलाम बेड़िया खुली, मिली हमें  स्वतंत्रता ।
मिली हरेक को खुशी , रहे मही विलासिता  ।।
हुए शहीद पुत्र, मातु  गर्व से   निहारती   ।
उजास कर्म की, ढले न सूर्य वो, दुलारती ।

दया करो दया निधे नही रहें मही दुखी ।
खिले कली, खुशी मिले ,रहे जहां तभी सुखी ।।
धरा रहे हरी भरी, यहाँ बिखेर तू खुशी 
नहीं कहीं विनाश हो, भरो वितान तू हँसी ।।

उषा झा देहरादून ठ

Sunday 26 January 2020

मन के भीतर कोलाहल

भीतर मन के कोलाहल है, कलयुग आ गया घोर है
देख आज मुरझाया मन है ,, नैन भींगोएँ कोर हैं  ।।
कुत्सित पापी घूम रहे हैं,  बदले अपना रूप सभी  ।
नहीं सुरक्षित दिल के टुकड़े, कैसा आ गया दौर है।। 

कोमल जान जुर्म नर ढाता, अब दुख नहीं हमें सहना ।
दंश चुभाते प्रतिपल मन को, धीरज नहीं हमें धरना ।।
बना खिलौना नारी जीवन, शक्ति रूप तू समझ उन्हें ।
नर  ने जीवन  खेल बनाया ,,अब प्रतिकार हमें करना ।।

जीवन के पधरीले पथ पर अब, तुमको बढ़ते जाना है ।
घना घिरे तम चाहे हो पथ पर , पार तुम्हें ही जाना है  ।।
कठिनाई में भी खुद हीअपनी, प्रशस्त करना मंजिल को ।
सूर्य के प्रकाश से एक दिन तो, जिन्दगी जगमगाना है ।

उषा झा देहरादून 

सुवासित मन आंगन

जब यौवन की कलियाँ चटकीं, अलि मकरंद की चाह में 
मलय- पवन भी होश उड़ाता , छाता नशा निंगाह में ।
आवारा बादल घूम रहा , नेह बूँद जो बरस रही ।
मचल दिवाने गये रूप के, बैचेन दिल है , आह में ।

गुलशन की है शोभा न्यारी, मन मुस्काया मेरा है ।
पुष्प खिले हैं रंग- बिरंगे, मधुप जमाया डेरा है ।।
सांकल उर की खोल, मधुमास, सहसा भीतर घुस आया ।
प्रीति- रीति तज स्वप्न लोक में, नव नव नित्य सवेरा है ।

पलें ख्वाहिशें, नयनों में अब , जीवन भर पी संग रहे ।
तृषित- हृदय तब,तृप्ति मिले जब ,भरे प्रेम मन रंग रहे ।।
भागी तृष्णा, गया हृदय मरु, सुवासित ! देह परदेशी ।
पुलकित रोम-रोम , फूट गए, कोंपल रसना अंग रहे ।।

जब लिए थाम, तुम हाथ प्रिये  ,छूट न पाये , साथ कभी ।
पगी प्रीति दिन रैन हृदय में, हो न विरह की रात कभी ।।
घड़ी मिलन की बेला अनुपम, कटे प्रेम में यह जीवन ।
जीवन- संध्या संग पिया हो, नहीं मिले आघात कभी ।।

उषा झा देहरादून

Wednesday 22 January 2020

शब्द ब्रह्म है ओम

विधा- सरसी छंद
16/11 (गाल)

शब्द चाशनी में लिपटे हों, दिल को लेते जीत ।
भाव भरे मधुरिम लफ्जों में, जग बन जाए मीत ।

 नाद सृष्टि में यही निहित है,,,शब्द ब्रह्म है ओम ।
कटु बोल हैं कोप के कारण,, बोल मधुर झरे सोम ।
शब्द- शब्द के  बने योग से ,, सभी धर्म के ग्रंथ ।
अलग अलग है रूप शब्द के, अलग अलग है पंथ।
कुटिल -बोल से द्वेष बढ़े हैं ,,मधुर शब्द से प्रीत
भाव भरो मधुरिम....

मधुर बोल से हृद परिवर्तन ,,विष- वाणी दे पीर ।
कड़वी भाषा करे व्यथित जब ,,नयन भरे बस नीर ।
शीतल छाँव, मधुर वाणी दे, खिले हृदय फिर फूल ।
दुख हो ,सुख हो, सब मौसम में, मनुज रहे अनुकूल ।
बहे ज्ञान गंगा वाणी में ,,,, जग की बदले  रीत ।
भाव भरे हो मधुरिम..

शारद की वीणा से निकला , यह अनुपम उपहार ।
मुरली की धुन में मुखरित है ,, शब्द प्रेम श्रृंगार ।
नाप तौल कर बोल मनुज तू ,नहीं हो भूल चूक ।
पट्टी बाँध अज्ञान की तू , बैठ न बनकर मूक ।
घायल शब्द करे अंतर्मन,,, होते शस्त्र प्रतीत ।
भर मिठास, वाणी में अपने ,,गा मधुर प्रेम के गीत।

शब्द चाशनी में लिपटे हो, हृदय सभी ले जीत ।
भाव भरे मधुरिम लफ्जों में, जग बन जाए मीत ।।

उषा झा देहरादून

भव तारिणी अम्बे


विधा - श्री गीतिका
2212    2212  2212  2212

माता क्षमा की हूँ सदा भूखी मुझे आशीष दो।
दुर्गा तुम्हारे द्वार आई आस से, माँ दर्शन दो ।।

जननी सुधी लें कौन है संसार में , जाऊँ कहाँ 
है पाप की झोली भरी, मैया तुझे, पाऊँ कहाँ

लिपटी रही माया हृदय कैसे करूँ मैं अर्चना
हे मात तू मेरी बने,आई भरे उर रंजना

पट्टी पड़ी थी नैन पर्दा  भूल पे  डाली रही
वरदान से झोली भरो ओ माँ रहे खाली नहीं
     
हे भगवती तू मुक्ति दे तेरी शरण में पापी पड़ी
हूँ आस की दीपक लिए ,कर जोड़ है दासी खड़ी

जो तू रहे ईष्या लिए, पर हीत कुछ करते कभी
पछता रहे क्यों अब, समय आता नहीं वापस सभी

उषा झा देहरादून 

पिया बिन तरसे नैन

विधा- मदिरा सवैया 
211/ 8  अंत गुरू( 2 )

211  211 211 211 211  211 211   211 2
झूम रहा ब्रज रास रचा वत कृष्ण बजावत है मुरली
नाच रहे सुन के धुन,  प्रेम रिझावत अद्भुत है मुरली 
खो कर होश सभी घर द्वार बिसार गई दिल है मुरली
आँचल है ढलका उलझे लट गोपन की बल है मुरली

माधव क्यों हिय नित्य जलावत गोपिन नीर बहावत है
बेबस प्रेम किया, अखियाँ तरसे सब राह निहारत है 
धेनु सखा सब भूल गये, छलिया ब्रजभूमि बुलावत है
देख दशा तुम जी रही दिन वो गिन ,श्याम जलावत है 

आस लिये कब से दिल सोच रहा कब प्रीतम को परखू
योजन कोश बसे जब मोर पिया उर में उनको निरखूँ
जीवन बोझ लगे अब पीर भरे उर, बेबस बैन लिखूँ
सावन में घन ज्यूँ बरसे मचले मन चातक नैन दिखूँ

उत्तराखंड देहरादून

प्रेम निवेदन


विधा :- ईश छंद 
=====================
112  121   22 
घनश्याम नेह घेरे ।
जब मीत साथ मेरे ।।
उर प्रीत है बढ़ाये ।
विरहा नहीं सुहाये ।।

मुरली मुझे सुना जा ।
मन कामना जगा जा ।।
सुन ! नाग के नथैया ।
तुमसे खुशी कन्हैया ।।

मृदु बाँसुरी बजा जा ।
दृग स्वप्न ही सजा जा ।।
ब्रज रास तो दिखा जा ।
रस प्रेम का चखा जा ।।

उर कंठ प्यास जागे ।
मजबूत नेह धागे ।।
सच भावना हमारी ।
यह राधिका तुम्हारी ।।

प्रभु मान राखना है ।
सब हर्ष बाँटना है ।।
तुम ही उपासना हो ।
तुम पूर्ण साधना हो ।।

अब जिन्दगी तुम्हीं से ।
सब चैन भी तुम्हीं से ।।
नयना नहीं बहा तू ।
मनवा वही जहाँ तू ।।
=====================
उषा झा 

Tuesday 21 January 2020

मुदित हिया पिय साथ


दोहा सृजन
 तीर चले जब नयन से, हर ले सारे चैन ।
 आतुर है मन बावरा , नागिन लगती रैन ।।

 घायल कितने शूरमा , देख मद भरे नैन ।
 प्रीतम पर मोहित जिया,छलक रहे मृदु बैन ।।

 सजन गए परदेश हैं , अब दिन रैन उदास ।
 मोती झरते नैन से , टूटे दिल की आस ।।

 फेर लिए मुख जब पिया , लगे हृदय आघात ।
अंगार भरे नयन में ,  किसे कहें  उर बत  ।।

 नेह भरे नयना मिले , हृदय भरे अनुराग ।
 अंकुर पनपा प्रेम का , कुसुमित दिल के बाग ।।

 थाम डोर दिल के लिए , छुटे नहीं अब हाथ ।
 नैन में उमंग भरे ,मुदित हिया पिय साथ ।।

 चंचल नयना मिल गए, भाया पिय का रूप ।
सुन्दर चितवन,मृदु बोल , दिल को लगे अनूप।।

 लक्ष्मी विराजे घर में , सजे अधर मुस्कान 
हँसी खुशी घर दीन भी, मिले प्रेम की खान ।।

गए भुला दुख आपना, देखी जो मुस्कान ।
कलुषित मन निर्मल हुआ,दूर भगा अभिमान।।

हाथ मुस्कुराकर बढ़े , जो देते सम्मान ।
घुलती मिश्री हृदय में,बढ़ता सबका मान  ।।

 बिगड़े काम सँवारता, नफरत होती  दूर ।
नहीं पूछ हो रूप की,गुण की चाह जरूर ।।

मिलते दुश्मन भी गले ,मुख पर हँसी बिखेर
तार दिल के जोड़ दिया , हँस कर आँखें फेर ।।

मुग्ध नयना  प्यार भरे , मुख पर है मुस्कान ।
देख पिया प्रफुल्लित मन, हृदय करें रस पान ।।

Monday 20 January 2020

बजी प्रीत की धुन

ज1222   1222  1222 1222
 मधुर धुन प्रीत की दिल में बजी पिय हो मिलन कैसे ।
 धड़कनें तो सुनो आकर , घटे दिल की अगन कैसे ।।
 कि तुम बिन मर नहीं जाऊँ, दवा तो कर पिया मेरी ।
 गमों का बोझ बढ़ती अब ,बुझे उर की जलन कैसे ।।

पिया क्यों खनकती कंगन, न भाये आज पायल है ।
झरे मोती, तुमारी याद में,मन नित्य  घायल है ।।
अधर लाली, सजी शृगांर करके, क्यों धुली कजरा ।
विरह फिर से मुझे हर दिन रुलाती अब कौन साहिल है ।

नही मिलती मुझे चैना कहूँ कैसे तुम्हें सजना  ।
हृदय में पीर कितनी हो उसे अब तो हमें सहना ।।
चुभी काँटे हृदय में जिन्दगी भर अब तड़पना है ।
दिये हो जब विरह प्रीतम शिकायत है बहे नयना ।।

नहीं धीरज धरे दिल अब कहाँ हो पिय चले आओ ।
तमस घिरने लगी देखो सनम रवि भी  ढ़ले आओ ।।
दुखी मन हर्ष के तुम फूल आकर अब खिला जाना ।
सुनो साजन बहे नैना  हृदय  रो रो  कहे आओ  ।।


उषा झा देहरादून

Sunday 19 January 2020

सूखीं नदिया

विषय-नदी
विधा- गीत (16/14 )

नदी शुष्क, नीर -विहिन जबसे , तट भी घिरे  हुए हैं ।
हवा चली ऐसी विकास की, घन अब रूठ गए हैं ।।

है जीवन दो बूँद नीर ही, मानव  व्यर्थ बहाए ।
क्या पूर्वजों के श्रम बेकार , मनु क्यों वृक्ष कटाए।।
अब बरसे न बदरा धरा पर, जीवन मुँह लटकाए ।
टुकुर- टुकुर पशु पक्षी देखे, कैसे प्यास बुझाए?  
 उजाड़ चमन प्रकृति रोती है, मिट अस्तित्व गए हैं ।
 शुष्क नदी नीर विहिन जबसे , तट भी घिरे हुए हैं  ।।

जल बिन नदी धरा है बंजर , सबको भूख रुलाये ।
मनुज बुलायी खुद ही आफत , दूषित वायु सताये।।
जल-संरक्षण बेकार समझा, निज करनी भुगत रहे।
मूल्य वक्त का जिसने समझा, वो ही मुस्कुरा रहे ।।
पट्टी खोलें आँखों की क्यों, वसुधा नष्ट किए हैं ।
नदी शुष्क, जल विहिन तट पर, तट भी घिरे हुए हैं ।

धरती माता उर विह्वल है, ऋतु परिवर्तन से रोती ।
बनी धरा मरुभूमि छुपे घन,अब उपज नहीं होती ।
कंक्रीट- अट्टालिकाओ में, हरियाली कहाँ रही  ?
हुआ नष्ट सौन्दर्य  जगत का , नदियों में नीर नहीं  ।।
खग पशु भी हो रहे हैरान, गिरि वन विजन हुए हैं ।
हवा चली ऐसी विकास की ....

प्रो उषा झा रेणु

Saturday 18 January 2020

कान्हा का रूप अनूप

विद्या:- वर्ष छन्द- वार्णिक
वृहती जाति
मगण, तगण, जगण,
222  221  121

कान्हा पे राधा निसार ।
दोनों ने खोले  उर द्वार ।।
नैना  खोये हैं  अभिसार  ।
भोली राधा दी अधिकार ।।

 कैसी थी वो मोहित नार ।
दौड़ी बंसी को सुन धार ।।
भूली  राहें,  हे   करतार  ।
थामे कान्हा के पतवार ।।

भाये  कान्हा को अनुराग ।
खेले गोपी माधव फाग ।।
मीठा मीठा, प्रेम अपार ।
 देखो छेड़े  हैं उर तार ।।

कान्हा के देखे  ब्रज  रास ।
कैसी माया ! नैनन प्यास ।।
गोपी राधा थी कुछ खास ।
झूमे  गाये पी  बहुपास   ।।

नैनों की आशा अब श्याम  ।
गोपी की चारों  बस धाम  ।।
बंधे जन्मों, है दिल याद ।
सच्चे रिश्ते ही  बुनियाद  ।।

लीला धारी के नव रूप ।
कान्हा राधा नेह अनूप  ।।
काली रैना वे मदहोश  ।
कान्हा नाचे हैं मन जोश  ।।
===================
उषा झा देहरादून 










पहला एहसास

मृदु स्पर्श नव उमंग मन में ।
अनगिनत यादें जेहन में ।।
शनैः शनैः वक्त फिसल गए ।
बंधन जन्म के बिछुड़  गए ।।

खिले पुष्प चमन में खुशबू ,
द्वय  दिल मचले फिर रूबरू ।।
प्रेम पावन बस महक रहे ।।
उनकी निशानी जेवर हैं ।।
पहला एहसास हृदय में ।
अनगिनत यादें जेहन में ।।

अल्हड़ मस्त स्वप्न कुँवारे ।
नयना लड़े संग तुम्हारे  ।
सूखे गुलाब किताबों में ।
छुपे हृदय हैं दर्द सारे ।
कैद अब जज्बातें दिल में ।
अनगिनत यादें जेहन में ।।
 
भूल सकी न मधुरिम यादें ।
निभा सके कहाँ तुम वादे ।।
 नहीं संग  प्रीतम  हमारे   ।
 शब्द में पिय अक्स तुम्हारे ।।
अधूरी चाह कसक दिल में ।
  अनगिनत यादें जेहन में ।

उषा झा

Thursday 9 January 2020

प्रीत की बात

विथा :- विमोहा छंद
212   212
प्रीत की रात है ।
राज की बात है ।।
तप्त ये गात है ।
 नेह सौगात है ।।

प्रेम तो खास है ।
नैन में प्यास है   ।।
कंत  भी पास है ।
ईश की आस है ।।

जीत संसार लो  ।
लक्ष्य को साध लो ।।
प्रीत को घोल लो ।
धीर को तोल लो ।।

दीप तो नेह के  ।
ज्योत है प्रेम के ।।
 गीत संगीत है   ।
 श्याम ही मीत है ।।

प्रीति को वार दो ।
रीति संवार दो  ।
मान सम्मान हो ।
फर्ज का भान हो ।।

संग तेरा रहे ।
नेह धारा बहे ।।
 सात फेरे कहे ।
मान रिश्ते रहे ।।

  प्रेम के मोल से ।
  मीत *दो बोल* से ।।
  मोद घोले हिया ।
   प्रेम  भाये जिया ।।

  प्रो उषा झा रेणु 
स्वरचित देहरादून 







Wednesday 8 January 2020

कचरे में बेटी


 14/ 14
क.
बेटी की मौत, कोख में ,
सरेआम हो आज रही  ।
ममता की प्याली खाली,
कचरे में खो, नित्य  रही ।।
हृदय लालसा बेटे की , 
सुता उपेक्षा सहती है ।
शर्मसार है आज सृजन
फूट कर वसुधा रो रही ।।
ख.
अत्याचारी छीन रहे
मातु पिता की नींदे तक।
नहीं सुरक्षित बच्ची भी ,
कोई  सँभाले कहाँ  तक?
 जन्म ,कली लेगी कैसे ,
अभिभावक सब डरे हुए ।
स्कूल से घर तक बच्ची,
साये में डर के कब तक? 
ग.
पढी -लिखी बेटी ब्याही ,
दौलत बिना न जा पाती ।
दहेज उजाड़ी जिंदगी,  
बिटिया जान चली जाती।
हँसी खुशी घर सँभालती , 
पर खुद की परवाह नहीं   ।
चाह नहीं  चंद लम्हे की  ,
बिटिया कभी न सुख पाती।

उषा झा देहरादून

Tuesday 7 January 2020

जिन्दगी


जिन्दगी कभी नेह की बौछार करती ।
प्रमुदित हृदय में सावनी घटा बरसती ।
छा जाती बहार रोम रोम महक उठता ।
नैनों में नये स्वप्न झिलमिलाने लगते ।।

जिन्दगी कभी इतनी कठोर बन जाती ।
हम ठगे निःशब्द हाथ मलते रह जाते ।
सागर के तट लहरों से थपेड़े खाते
रेत की भाँती तप तप कर बिखर जाती ।।

जाने जिन्दगी कितने ही  रंग दिखाती ।
किस्मत की लकीर जब किसी की चमकती 
इन्द्रधनुष के सप्त रंग से आच्छादित ।
उमंगों से भरी जिन्दगी मुस्कुराती ।।

आशाओं और विश्वासों के डोर थामती,
कल्पनाओं को हकीकत में ढालती ।
टूटे रिश्ते में जान फूकती जिन्दगी ,
बीज नेह की बो कर मन मरु सींचती ।।

उषा झा देहरादून

Monday 6 January 2020

जीवन की सौगात

विधा-  दोहे मुक्तक 

*मेरे जीवन के लिए*,तुम "श्रेयश" सौगात ।
तुम्हें देख मन हो मुदित , झूमे पुलकित गात ।।
मात शारदे का रहे ,,तुम पर आशीर्वाद ।
मानव मूल्यों की सजे , मानस में बारात ।।
मानवता को तू करे , प्रतिपल आत्मासात ।।

बेटा तुझको तो रखे , ईश्वर ,आयुष्मान ।
मुखड़ा भी तेरा रहे  , सदा  दैदीप्यमान ।।
नहीं अवज्ञा हो कभी , दिल सबके लो जीत ।
आलोकित सब पथ रहें, मिले जगत में  मान  ।।

चाहत दिल में एक ही, नव गढ़ो कीर्तिमान  ।
सेवा कर मात पितु का , लाना मुख मुस्कान ।।
लड़ना वंचित के लिए,  मिले उन्हें अधिकार ।।
नाज करें तुम पर सभी, बढ़े हमारा शान ।।


उषा झा देहरादून

विरही तन मन सर्दी में


विधा :- हंसमाला छंद
मापनी- 112  212  2

वन  में  मोर  नाचे ।
मन के  प्रीत  बाँचे ।।
झुमके   बूँद   गाये ।
जग  को   प्रेम भाये ।

पिय  ने  नींद   छीना ।
रति ने  होश  छीना  ।।
जगती  आँख  जीना ।
अब  तो  दर्द   पीना ।।

चमके   मेघ    काले ।
छलके   नैन   प्याले ।।
कजरी  गीत   गा  ले ।
उर के   खोल  ताले ।।

सपने    नैन    डोले  ।
रसना   नेह   घोले ।।
दिल  के  भेद  खोले ।
पिय भी    प्रेम   तोले ।।

सजना   ताज  साजे ।
दिल   के  साज  बाजे ।।
अब तो  पास   आओ ।
सुख   के  रैन   लाओ ।।

घन    छाये,  रुलाये ।
विरहा  भी   जलाये ।।
तम  की  रैन  जागूँ ।
खुद  से   नित्य भागूँ ।

चुपके ख्वाब आते।
मुझको  क्यों  जगाते ?
बस वो भाव खाते  ।
मुझसे   दूर   जाते ।।

सहना  पीर  भारी ।
सजना  धीर   हारी ।।
लग   जा  अंग  मेरे ।
रहना   संग    तेरे ।।

Friday 3 January 2020

खुशियाँ आये नववर्ष

विधा-  दोहे मुक्तक 

सूर्य किरण नव वर्ष की ,पूर्ण करे सब आस ।
सुष्मित पुलकित हृदय में,नव भरे अहसास 
जीवन आलोकित सदा,रहे तमस अब दूर ।
नित्यराग,उमंग नवल,जीवन हो न उदास ।

कोहरे की चादर से , लिपटे मोती घास ।
प्रीत मुखरित मुदित हिया, नैन स्वप्न है खास 
भीनी भीनी महक, उर , याद करे गत वर्ष।
ख्वाब पूर्ण नव वर्ष हो, भरे हृदय  उल्लास 

बिछुड़े परिजन हृद बसे याद करे दिल आज
धूँध  वक्त के  खो गए , रोये हैं दिल आज ।।
 कहाँ छुपे वो छोड़ कर,थे जो बहुत अजीज 
बीते निशान वर्ष के, ढूंढ रहा दिल आज ।।

नया वर्ष खुशियाँ लिए, आना मेरे द्वार ।
प्रतिपल ही उल्लास भर,सुखी रहे संसार ।
ईश ! शीश पर हाथ रख,देना प्रभु आशीष ।
हमें भँवर से तार दो, इतना कर उपकार  ।

उषा झा देहरादून

Thursday 2 January 2020

उर में पुष्प खिले

विधा-  माहिया छंद- 
 12, 10 , 12 मात्राएँ पंक्तियों की 
पहली तिसरी चरण समतुकांत ।
212 वर्जित ।

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तन भी ठिठुर रहा है ।
ऋतु का कहर मचा ।
पिय जी मचल रहा  है ।

शीतल सेज रुलाई ।
प्रियतम भूल गए ।
सर्दी अगन बढ़ाई ।

कटती सजन न रैना ।
किससे दुख बाटूँ ।
निस दिन बरसे नैना ।

विरहा दर्द बढाये ।
पिय अंग लगाना ।
देख शिशिर सताये ।

तकती हूँ अब राहें ।
कितने वो बेदर्दी ।
निकली दिल से आहें ।

छुपना पी के बाहों ।
प्रियतम आ जाओ।
महके  गजरा बालों।

उर में पुष्प खिलाऊँ ।
उर आंगन गमके ।
कर शृगांर रिझाऊँ।

दमके क्यों मुखड़ा ।
मन संग तुम्हारा ।
दिल में जो प्रीत जड़ा ।

उषा झा देहरादून 

झूमे कोकिल मन

विधा हरिहरण घनाक्षरी 
8,8,8,8

मदीर बहे पवन ।
दूर धरा की तपन ।
महके चंदन वन ।
मुदित मानव मन ।

पुष्पित है गुलशन ।
सुरभित है कानन ।
सारिका फुदके वन ।
झूमता कोकिल मन ।

मन भावन सावन ।
पुलकित जन जन ।
पिया से लड़े नयन ।
पिघले नेह से मन ।।

बजे पायल छनन ।
जब  खनके कंगन ।
भरे उमंग सघन ।
बहके प्रीतम मन ।

उषा झा