Sunday 9 February 2020

अधीर मन प्रीत की राहों में

साधना 

विधा- मुक्तक 
कब निकल पड़ी जाने कैसे , सजन प्रीत की राहों में ।
सही लौट कर आना मुश्किल, मिले खार ही राहों में।
पिया विलय अस्तित्व किया है, जब से तुमसे नैन लड़े 
भंग नहीं हो प्रेम तपस्या,,पीर भरे दिल आहों में ।।

लगन तुम्हें पाने की दिल में ,मैं  करूँ अर्चना तेरी ।
मिले नेहिल प्रसाद तुम्हारा ,अब करूँ साधना तेरी ।
बनी प्रेम में मीरा जोगन, बिन प्रिय जग सूना सूना ।।
बूँद अमृत की छलका दो अब , बस सुनों प्रार्थना मेरी।

रोम-रोम में वो बसते हैं  , हिया लगी साँवरिया से।
ढूँढ रहें है नयना तुझको, दूरी क्यों बावरिया से ।।
लक्ष्य तुम्हीं  जीवन के मेरे ,तन मन अर्पण सजना को ।
दर -दर भटक रही हूँ निशि दिन ,रसना बहे गुजरिया से।

झर झर बहते नयन बावरे, धीर खो रहे हैं प्यारे ।
भटक रहे मन सघन विटप में , गिन रहे नैन हैं तारे।।
पिंजरें तोड़ उड़ी है मैना, तुम्हें  ढूँढने को निकली।
कहीं साँवरे जब नहीं मिले, मन अधीर भी हैं हारे  ।।

उषा झा देहरादून

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