हृदय के भाव पढ़े न कोई , आहत मन इन बातों से ।
रिश्ते नकली यूँ फिसल रहे, बूँद कमल के पातों से ।
राजदार जो भी बनते है ,वही हमें घायल करते ।
हृदय विहीन समाज बेदर्द, दर्द देकर मन न भरते ।
कोमल मन और व्यथित नहीं हो,भेद छुपाते हम सबसे ।
छुपे तम जीवन के अपने , इन अंधेरी रातों से ।
हृदय की बात पढ़े न कोई, आहत मन इन बातों से ।।
नयनों में उसके स्वप्न सजे , चाहत के जो पंख लगे ।
मन भर कुँलाचे भरी वितान में, दिए दर्द बन कौन सगे?
टूट पंख उसके गए, उठी,, विश्वास हर इसांनो से ।।
मन विहग निशि दिन किलोल करे,दुखी बहुत वह घातों से ।
हृदय की बात पढ़े न कोई, आहत मन इन बातों से ।।
सुनो #सुजाता कहना मानो, बंधन उर के तुम खोलो ।
छोड़ परवाह अब लोगों की ,क्यों तुम लफ्जों को तोलो ।
झाँसी की रानी बन जाओ,खुद को अब तो पहचानों ।
मेधा से स्त्री परिपूर्ण सभी , पन्ने इतिहास के खोलो ।
अपने चश्मे से देखा कर , हो गर्वित स्त्री जातों से ।।
हृदय की बात पढ़ ले चाहे ,आहत क्यों इन बातों से ?
रिश्ते नकली यूँ फिसल रहे,बूँद कमल के पातों से ।।
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