विधा : कीर्ति छंद(वर्णिक)
दशाक्षर
(सगण)×3 + गुरु
112 112 112 2
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112 112 112 2
मधुमास पिया बिन फीका ।
मन घायल है दिन फीका ।।
पलकें बस भींग रही है ।
तुमको दृग ढूंढ रही है ।।
जब से तुम दूर गये हो ।
तबसे मन पीर भरे हो ।।
हर रैन उदास लगे हैं ।
सब रंग उमंग भगे हैं ।।
बिन साजन आँगन सूनी ।
विरहा डँसती अब दूनी ।।
खुशियाँ तुम संग गई है ।
यह जीवन व्यर्थ हुई है ।।
उर प्रेम करे तुझको है ।
यह रोग लगे मुझको है ।।
मनभावन ये ऋतु आई ।
वह तो उर प्यास बढाई ।।
रजनी सजती सजना से ।
खिलती कलियाँ भँवरा से ।।
सुन लो मन मीत तुम्हीं हो ।
मन के सुख शान्ति तुम्हीं हो ।।
लगती यह मौसम गाली ।
बिन साजन के सब खाली।।
बिन प्रीतम वर्ष अधूरे ।
कर दो सपने सब पूरे ।।
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उषा झा देहरादून
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