Monday 20 January 2020

बजी प्रीत की धुन

ज1222   1222  1222 1222
 मधुर धुन प्रीत की दिल में बजी पिय हो मिलन कैसे ।
 धड़कनें तो सुनो आकर , घटे दिल की अगन कैसे ।।
 कि तुम बिन मर नहीं जाऊँ, दवा तो कर पिया मेरी ।
 गमों का बोझ बढ़ती अब ,बुझे उर की जलन कैसे ।।

पिया क्यों खनकती कंगन, न भाये आज पायल है ।
झरे मोती, तुमारी याद में,मन नित्य  घायल है ।।
अधर लाली, सजी शृगांर करके, क्यों धुली कजरा ।
विरह फिर से मुझे हर दिन रुलाती अब कौन साहिल है ।

नही मिलती मुझे चैना कहूँ कैसे तुम्हें सजना  ।
हृदय में पीर कितनी हो उसे अब तो हमें सहना ।।
चुभी काँटे हृदय में जिन्दगी भर अब तड़पना है ।
दिये हो जब विरह प्रीतम शिकायत है बहे नयना ।।

नहीं धीरज धरे दिल अब कहाँ हो पिय चले आओ ।
तमस घिरने लगी देखो सनम रवि भी  ढ़ले आओ ।।
दुखी मन हर्ष के तुम फूल आकर अब खिला जाना ।
सुनो साजन बहे नैना  हृदय  रो रो  कहे आओ  ।।


उषा झा देहरादून

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