दोहा सृजन
तीर चले जब नयन से, हर ले सारे चैन ।
आतुर है मन बावरा , नागिन लगती रैन ।।
घायल कितने शूरमा , देख मद भरे नैन ।
प्रीतम पर मोहित जिया,छलक रहे मृदु बैन ।।
सजन गए परदेश हैं , अब दिन रैन उदास ।
मोती झरते नैन से , टूटे दिल की आस ।।
फेर लिए मुख जब पिया , लगे हृदय आघात ।
अंगार भरे नयन में , किसे कहें उर बत ।।
नेह भरे नयना मिले , हृदय भरे अनुराग ।
अंकुर पनपा प्रेम का , कुसुमित दिल के बाग ।।
थाम डोर दिल के लिए , छुटे नहीं अब हाथ ।
नैन में उमंग भरे ,मुदित हिया पिय साथ ।।
चंचल नयना मिल गए, भाया पिय का रूप ।
सुन्दर चितवन,मृदु बोल , दिल को लगे अनूप।।
लक्ष्मी विराजे घर में , सजे अधर मुस्कान
हँसी खुशी घर दीन भी, मिले प्रेम की खान ।।गए भुला दुख आपना, देखी जो मुस्कान ।
कलुषित मन निर्मल हुआ,दूर भगा अभिमान।।
हाथ मुस्कुराकर बढ़े , जो देते सम्मान ।
घुलती मिश्री हृदय में,बढ़ता सबका मान ।।
बिगड़े काम सँवारता, नफरत होती दूर ।
नहीं पूछ हो रूप की,गुण की चाह जरूर ।।
मिलते दुश्मन भी गले ,मुख पर हँसी बिखेर
तार दिल के जोड़ दिया , हँस कर आँखें फेर ।।
मुग्ध नयना प्यार भरे , मुख पर है मुस्कान ।
देख पिया प्रफुल्लित मन, हृदय करें रस पान ।।
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