Tuesday 16 June 2020

उल्फत की रैन

काफिया - आम
रदीफ - हो जाए
1222     1222      1222         1222

  तुम्हारे संग बीते  खुशनुमा   यह शाम   हो   जाए  ।
 बिछुड़ कर भी मधुर पलछिन नहीं गुमनाम  हो जाए।
      
चली चर्चा  जभी से ईश्क  की, हर कान चौकन्ने    ।
लगी है  भीड़  मजनूँ की  उन्हें  पैगाम  हो  जाए  ।।

उन्हें उल्फ़त भरी  हर  रैन  की  चाहत सदा रहती  ।
चलाए नैन से  बस तीर  दिल  नीलाम   हो   जाए  ।।

अगर दिलबर  तुम्हारा प्यार हो सच्चा मिटा दूँ जाँ  ।।
तुम्हें कुर्बां  किया तन मन  जरा सा नाम  हो   जाए ।।

भुलाए भी नहीं वो वक्त   बिसराता   हृदय   अंकित ।
सुहाने दिन करे पुलकित,नवल उर धाम  हो जाए ।।

पहर बीते नहीं आयी खबर उनकी  सशंकित मन ।
पवन संदेश दो पिय का   तभी  विश्राम  हो  जाये  ।।

बने सेवक निभाना ही पड़े हर  फर्ज  है  सबको ।।     
निखरता  सोच जब मनका ,शुचित आवाम हो जाए  ।।

विरह भारी  चिकित्सक पिय  उषा बैचेन रहती है ।
जगत  विपदा टले अब तो उन्हें  आराम हो जाए ।।
उषा झा देहरादून

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