Monday 3 December 2018

दो मुँहें

विधा - क्षणिका

हाव भाव ऐसे  जैसे सगी अपनी   1.
मीठी चाशनी से तर उसकी वाणी
बातों ही बातों में दुखती रग पकड़ी
भीतर की बात जैसे ही वो उगली
फैल गई देखते देखते सारे गाँव में

 अभिमान था अपनी दोस्ती पर   2.
 उसके आने पर खिल उठता दिल
कहकहों से गूँजा करता महफिल
मौके पाकर पीठ में ऐसे छूरा भोंका
 तार तार ही हो गई उसकी मित्रता
सच्चे रिश्ते बनाने से दिल अब डरता

सबके पास शेखी बघार रही थी         3.
बड़ाई का पुल बांध रही थी
साहब बनके आया बेटा बहू
कमी न रहे आवभगत में
उधार ले के सारी बंदोबस्त की
आज जा रहे गले मिलकर
 खेती कैसी है वे पूछकर

 मालिक का कारोबार संभाला    4.
उसने बड़े मनोयोग से
खेतों की देखभाल में
दिन रात लगा दिया उसने
फसल कटकर आई जैसे ही
ट्रको में लद कर चली गई
भूख न मिटी ! पेट पीठ पकड़ ली

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