Wednesday 27 November 2019

जीवन के संताप

विधा - रोला 

ढलती जीवन साँझ , सुहाने पल हैं  बीते ।
फिसल गया जब वक्त , मनुज क्यों लगते रीते।।

पले दिलों में मोह , जिन्दगी व्यर्थ गँवाया ।
 किए नहीं जब कर्म, मनुज क्यों फिर  पछताया ।।
कटी नींद में उम्र ,  भुलाया नाते रिश्ते ।
जीवन संध्या पास , शीष पकड़ क्यों सिसकते  ।।
करते छल दिन रैन , गम संताप के पीते ।
फिसल गया जब वक्त, मनुज क्यों लगते रीते ।

तन से निकले प्राण, उड़े पिंजरे से देखो ।
धन दौलत बेकार , जरा तुम यही परेखो ।
गया  नहीं कुछ संग,   रटै तू   तेरा    मेरा   ।
धन बल का अभिमान, बँधा माया का फेरा ।।
धोया कब मन मैल , हरदम स्वार्थ में जीते   ।
फिसल गए जब वक्त , मनुज क्यों लगते रीते ।।

तुम जो बोये बीज , काटता फसल उसी का ।
त्याग दिया संस्कार, निभाया न फर्ज सुत का ।।
आई जीवन शाम ,मन अब लगे अकुलाने  ।
खुशियाँ होती बाँझ , भय फिर लगते समाने ।।
होता  यौवन  खत्म  , अश्रु नयन हैं  पीते  ।
फिसल गए जब वक्त,   मनुज क्यों लगते रीते ।।

ढलती जीवन सांझ, सुहाने पल हैं बीते ...।।

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