Thursday 14 November 2019

लीलाधर घनश्याम

विधा-  दुमदार दोहे 

बहु भाग्य वृन्दावन के, बाल-कृष्ण का रूप।
नटखट माखन चोर बन , लगते कृष्ण अनूप ।।
जी लीला धर ले उड़े ।
नेह गोपी के उमड़े ।।

नित्य चोरी माखन नित्य ही , करें सखा, गोपाल ।
गोपी करें शिकायतें, जाते थे वो टाल ।।
जब कान्हा पकड़े गए ।
ओखल से जकड़े गए ।।

मुग्ध नैन ब्रजवास के, देख अलौकिक रास ।
मोहित राधा, कृष्ण पर, बंसी राधा दास 
वो यशुदा का  लाड़ला ।
गुपियन का भी लाड़ला ।

ब्रजभूमि के भाग्य खुले, कण कण में भगवान ।
पूरा द्वापर में हुआ , देवकि को वरदान ।।
कंस संहारा गया ।
दानव मारा गया ।।

भूल कृष्ण सबको गए, धेनु, यमुन के तीर
राज-काज में वे बहे, गुपियन बहता नीर ।
बाम अंग रुक्मी नार ।
 गोवर्धन अँगुर धार ।।

पार्थ कृष्ण को बहु प्रिय , सौपा गीता ज्ञान 
मोह भंग अर्जुन  हुआ, नष्ट हिया अज्ञान। 

बने  सारथी  मित्र के ।
महभारत के चित्र  थे।।

पाण्ड़व अकेले जब हुए, सिर्फ कृष्ण थे साथ ।
कुचला सिर अन्याय का , मिली जीत प्रभु हाथ ।।
दिखा मार्ग, मानव दिए।
;रूप विराटी धर लिए।।

No comments:

Post a Comment