गाँधी का एक सपना, हिन्सा जग हो खत्म ।
खत्म ईष्या द्वेष करें, मिटा हृदय से क्षद्म ।।
कहते गाँधी थे हमें , रिश्ते रहे प्रगाढ़
प्रगाढ़ प्रेम विभेद बिन,लाओ हृद से काढ़।।
ऊँच नीच निकृष्ट कथन ,सब है एक समान ।
समान काया मनुज के, विचार क्यों
असमान ।।
जल वायु खुशी गम मिले,सभी ईश के पुत्र ।
पुत्र धर्म का फर्ज कर, लक्ष्य से गुम कुपुत्र ।।
बापू ने जो सीख दी, दिल से कर स्वीकार ।
स्वीकार कर स्वच्छ धरा ,अब न करो अपकार ।।
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