Sunday 1 December 2019

सुगढ साझ मन हेरती

विषय - साँझ, संध्या, गोधूलि बेला
  विधा-  गीत (लावणी छंद )
मुखड़ा ...         
दिन भर जलना नियति, तप्त मन, अधिरता निगाहों में ।
अगन बुझाने छिप रहा भानु, निशा के पनाहों में ।

अंतरा ...
         1.
खग पशु मानव भी खोज रहे , एक छाँव प्रीति भरी ।
सुगढ़ साँझ मन हेरती आस, मधुर मिलन तृप्ति भरी ।

पंछी झुण्ड में लौटता, विटप गाय रंभा रही ।
गाता विभोर चरवाहा , रंग साँझ लुटा रही ।।

आशाओं के जब दीप जले, मन प्रिय के बाहों में ,
अगन बुझाने छिप रहा भानु ,निशा के पनाहों में ...।।
           2.
मासुम कली कुम्हला जाती, धूप तन मन जलाता ।
प्यासा पंछी दिन भर भटके, छाँव कहाँ बहलाता ।

लता वृन्द भी लुंज पुँज , नव किसलय मुर्छाया ।
मजदूर पस्त जलता तन , मन बहुत कुम्हलाया ।।

गोधूलि बेला हर्षित जीव , झूम रहे राहों में ,
अगन बुझाने छिप रहा भानु , निशा के पनाहों में ।
             3.
दूर कहीं मांझी जब गाता , हृदय भींग फिर जाता ।
फसल खेत में जब जल जाता, तड़प कृषक फिर जाता ।

थकती कोकिल कूक कूक , रुन्धित मन विरहण के ।
जाने अब किस देश मलय , सुषुप्त हृदय मनुज के ।

संध्या स्पर्श करे खिले हृदय , उत्सव मल्लाहों में ।
दिन भर जलना नियति, तप्त मन,अधिरता निगाहों में.. 
           4.
तम घिर गया, अस्त दिनकर , दीये मंदिर में जले ।
भजन गूँजते कानों में , उर भक्ति में खो चले ।।

झूलन मंदिर सब गाये , मन वृन्दावन घुमता ।
रास रंग में खोया जग , प्रिये संग उर खिलता ।।

चाँद तारे नभ जगमगाते, सित चाँदनी बाँहों में ।
दिन भर जलना नियति, तप्त मन , अधिरता निगाहों में ।

अगन बुझाने छिप रहा भानु , निशा के पनाहों में ।।
उषा झा



No comments:

Post a Comment