Wednesday 25 December 2019

कुक्षी में नव तन

विधा- लावणी मात्रिक छंद ( 16/12अंत गुरू से)
आधारित गीत

 शिशु आगमन से हर्षित धरा,खिले जोश फिर यौवन का। सिलसिला एक चलता रहता , मानव के जन्म  मृत्यु का।।

 महका महका मन था सबका, तन नया कुक्षी में आया।
मन मुस्कुराया शिशु जन्म से, रो कर धरती पर आया ।।
मिले स्त्री पुरुष जब खिले फूल, नन्हीं जां से जग महका।
सिलसिला एक चलता रहता, मानव के जन्म मृत्यु का।।

कर्म अनोखा मनुज करे जब, गौरव गीत सभी गाते ।
त्याग बलिदान की गाथा मनु, युगों तलक गुनगुनाते ।।
सूनसान जगत खिलखिलाया, हुआ अवतरण मानव का ।
सिलसिला एक चलता रहता, मानव के जन्म मृत्यु का ।।

 राग द्वेष से हटकर बचपन, रंग जवानी के कितने ।
मोह बुढ़ापे में भंग हुआ,  बदले गिरगिट से अपने ।।
अंतहीन सिलसिला दुखों का , जीवन चक्र यही जग का ।
शिशु आगमन से हर्षित धरा,खिले जोश फिर यौवन का ।

व्यर्थ राग में रत जीवन है, रिश्ते- सारे मतलब के ।
जिसके सुख की खातिर नर,गठरी बाँधे थे छल के ।।
बने बोझ अब उसी पूत पर , नहीं नीर रूके दृग का ।।
सिलसिला एक चलता रहता,  मानव के जन्म मृत्यु का ।
उषा झा


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