विधा- गीत
ताटंक छंद 16/14
खिली कली जब,मुग्ध नयन सब ,गुलशन की शोभा न्यारी
उन्मादित भौंरा करता तब, रस चखने की तैयारी ।।
अध खिले पुष्प, पथ में बिखरे,क्यों कुचल दिए है पैरों ।
चकृत जिन्दगी व्यथित हृदय है, फेंक गए पथ में गैरों ।
जब महका करती बागों में ,भरी नेह दृग में भारी ।खिली कली जब मुग्ध नयन सब,गुलशन की शोभा न्यारी ....।।
किस्मत उसका ही चमका है ,मिले श्री चरण का डेरा।
फिर रूप ढ़ला अब पूछ नहीं, क्यों मुखड़ा सबने फेरा ।।
बीच राह सबने कुचल दिया, अब पीर हृदय में भारी ।
खिली कली जब मुग्ध नयन, गुलशन की शोभा न्यारी ।।
यौवन का जब ही संग रहे , कितने रहते दीवाने ।
भँवरे मदहोश बावरे बने , खुशबू के वो दीवाने ।
जब मुरझा गई हुई तृष्कृत , पर अब नहीं रहीं प्यारी ।
खिली कली जब मुग्ध नयन सब, गुलशन की शोभा न्यारी ।
किस्मत से ही हरि चरण मिले,कृपा करे तब शीश चढ़े ।
पुनीत कर्म किसी जन्मों का ,प्रीत भरे हरि हृदय पढ़े ।
शत जीवन तन अब नहीं धरे , सुन विनती श्याम हमारी ।
खिली कली जब मुग्ध नयन सब , गुलशन की शोभा न्यारी ।
उन्मादित भौंरा करता तब , रस चखने की तैयारी ।।
उषा झा
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