भीषण सर्दी शिखर पर, जीवन है बेहाल ।
पारा उत्तराखंड की ,,रोको बनकर ढाल ।।
छुपा दुबक कर भानु है, डरा गगन का भूप ।
सर्दी में तन ठिठुरता, बेजान हुआ धूप ।।
प्रकोप सर्दी की बढ़ी , काँप रहे हैं गात ।
ओस वृक्ष पर छा गया, ढ़के सभी हैं पात ।।
धनिक रजाई में छुपा , चबा रहा बादाम ।
दीन रबड़ी को तरसे, दे दो दाता राम ।।
सीत लहर में भी कृषक, बो रहा स्वप्न बीज ।
चैन नहीं उसको कभी, नहीं किसी पर खीज ।।
द्वार खड़े जबसे शिशिर, शीतल हुआ समीर ।
एक समान साँझ सुबह , खग वृन्द भी अधीर।।
ऋतु की मार दीन पर पड़े, बर्फ पड़ी है घैल ।
किसान भीषण ठंड़ में , काँधे पे हल बैल ।
दुबक गए दिनकर कहाँ, रही कुहासा मार ।
ठिठुर रहा तन ठंड से, मनवा है बेजार ।।
कातर नैना भोर से , हों कैसे अब स्नान ।
मंदिर भी बासी रहे, मुश्किल पूजन ध्यान ।।
उषा झा स्वरचित
No comments:
Post a Comment