Thursday 19 December 2019

ऋतु की मार

भीषण सर्दी शिखर पर, जीवन है बेहाल ।
पारा उत्तराखंड की ,,रोको बनकर ढाल ।।

छुपा दुबक कर भानु है, डरा गगन का भूप ।
सर्दी में तन ठिठुरता,  बेजान हुआ धूप ।।

प्रकोप सर्दी की बढ़ी , काँप रहे हैं गात ।
ओस वृक्ष पर छा गया, ढ़के सभी हैं पात  ।।

धनिक रजाई में छुपा , चबा रहा बादाम ।
दीन रबड़ी को तरसे,   दे दो  दाता राम ।।

सीत लहर में भी कृषक, बो रहा स्वप्न बीज  ।
चैन नहीं उसको कभी, नहीं किसी पर खीज ।।

द्वार खड़े जबसे शिशिर,  शीतल हुआ समीर ।
एक समान साँझ सुबह , खग वृन्द भी अधीर।।

ऋतु की मार दीन पर पड़े, बर्फ पड़ी है  घैल  ।
किसान भीषण ठंड़ में , काँधे पे हल बैल ।

दुबक गए दिनकर कहाँ, रही कुहासा मार ।
ठिठुर रहा तन ठंड से, मनवा है बेजार ।।

कातर नैना भोर से , हों कैसे अब  स्नान  ।
 मंदिर भी बासी रहे, मुश्किल  पूजन ध्यान ।।

 
 उषा झा स्वरचित

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