Wednesday 25 December 2019

अरुणिम अभ्र


विधा गीत

नभ का आनन दहक रहा है  ।
रम्य रूप पा चमक रहा है ।।

रश्मि रथी से दिप्त दिशाएँ ।
वृक्ष लता नव जीवन पाएँ ।।
अरुण उषा मिलन मनोहारी ।
देख कुलाँचे हिरनी मारी।।
खग पशु हर्षित चहक रहा है ।
नभ का आनन दहक रहा है ।

ज्योति पूँज जब किरणें लाई ।
पाखी गगन में चहचहाई ।।
सुषुप्त महि जब कुसमित हुई ।
 तितली फूलों पर मड़राई ।।
भृंग बाग में बहक रहा है ।
नभ का आनन दहक रहा है ।।

ले रहा जग  प्रेम अंगड़ाई ।
प्रेयसी दिल से गुनगुनाई  ।।
नूतन कोपल यूँ हृदय खिले ।
राजीव नयन ख्वाहिशें पले ।
पग सजनी का थिरक रहा है
नभ का आनन दहक रहा है ।

आलोकित नभ जग मुस्काए ।
अरुणिम अभ्र झूमे लताएँ ।।
सजनी यादों में खो जाती ।
सरित उमंग में  गुनगुनाती ।।
जग ऊर्जा पा दमक रहा है ।।
रम्य रूप पा चमक रहा है ।
नभ का आनन दहक रहा है ।।

*प्रो उषा झा रेणु* 

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