बाल कविता
भोलू की छुक छुक रेल
लगी है भीड़ बच्चों की
बच्चों को हुआ कौतूहल
ललचाई निगाहें उसकी
घर में लगा भोलू का मेला
अचरज में पड़ गए बच्चे
धुआं उड़ाती देख के रेल
भाया खिलौने वाली रेल
सबका हीरो बना है भोलू
सब बच्चे हर कहा मानते
जो भी फरमाता है भोलू
देख क्रोधित हुआ भोलू
लालच में किसी ने चुराई रेल
रेल चोरी से लगा रोने भोलू
बच्चों ने ढांढ़स बंधाया बोले
जल्दी हम ढूंढके लाएगें रेल ...
बच्चों ने बिछाया अब जाल
जोर जोर से सब बच्चे बोले
जो चूराएगें वो जाएंगे ही जेल
पतलू सहम गया लाया रेल ...
उषा झा (स्वरचित)
उत्तराखंड (देहरादून)
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