विधा- हरिगीतिका
हे अम्बिके मैं बेसहारा ,कौन मुझ पे ध्यान दे । 1.
दरबार में आई तिहारे , मात ममता दान दे ।
दे दो भवानी तू सहारा, कर कृपा मम तार तू ।
अज्ञानता की तिमिर उर में ,कर मेरा उद्धार तू ।
तेरी दया से लंगड़े चले , शक्ति भरमार है तुझे ।
है निवास धुर्तों की बस्ती , ले लो शरण में मुझे ।
खाल में है छुपा भेड़िया , परख सकूँ दृष्टि दो ।
पापियों से जगत भरा है ,कर संघार उबार दो ।
जीने न दे लोग निर्बलों को, जिन्दगी असहाय है ।
है अधर्म का ही बोलबाला, पहना सब नकाब है ।
छल प्रपंच के आवरण में क्यों,फिर सच आज ढक गया । अधंकार संसार से मिटाकर ,मातेश्वरी कर दया ।
करबद्ध मैं कर रही विनती ,अब तो दर्शन दीजिए ।
भव बंधनों में पड़े मन को , माँ मुक्ति दे दीजिए ।
हूँ जग में अबला अकेली, पुकार तो सुन लीजिए ।
आप ही मातु पितु मेरे हो ,आसरा दे दीजिए ।
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