काफिया-आ
गम देकर वो सारी खुशियाँ चुरा ले गयी
बेदर्दी सनम कर हदें पार भरोसा ले गयी
एतवार करना किसी पर बहुत मुश्किल
बदनुमा दाग चेहरे पे चेहरा छुपा ले गयी
किसी के दिल की खोट दिखती कहाँ है
औकात वो असलियत के दिखा ले गयी
हकीकत यही बिकती है सब कुछ बाजार में
जेब जिसके गरम हो जमीर भी बिका ले गयी
विश्वास नहीं है आज किसी को किसी पे ही
खाते हैं सब धोखा मुहब्बत के वफा ले गयी
प्रियतम के प्यार में पागल गुजर गए दर बदर
उनके गमों ने नैनों में अश्रु धार बसा ले गयी
मुहब्बत का दौर भी अजीबो गरीब है साहिब
नशा का ये आलम सारे सुकून सजा ले गयी
किसी पे एतवार करना अब बहुत है मुश्किल
औकात वो अपने ही हस्ती का मिटा ले गयी
सच और झूठ की पहचान करना कठिन काम
मतलब परस्त जहां में सच्ची प्रीत लुटा ले गयी
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