Monday 19 November 2018

अगन पीर की

विधा- रूपमाला छंद
14 / 10 के भार मात्रा

भँवरा लगा रहा फेरा ,कलियों का देखो    ।
प्रेम रस पान को छुपा है ,पंखुड़ी में देखो    ।
रूप निखरा गुलशन का,चटक गई कलियाँ  ।
अलि पुष्प का मिलन अद्भुत,बिखर गई पंखुड़ियाँ

नयन की भाषा है मौन , चुभता मन कटार   ।
बिन बोले ही कर देता, झंकृत दिल के तार
मन से मन का डोर बंधा, जन्मों का बन्धन ।
प्रियतम संग रहे हरदम  ,टुटे न प्रेम बंधन ।

हृदय के प्रेम भावों से  ,  जले छंद के अलाव
सद्य पी को समर्पित मेरे, अब हर लय व भाव
 रहूँ न विलग तुझसे कभी ,हर क्षण संग बिताए
 लफ्ज भी सिर्फ तेरे गजल , व नज्म गुणगुनाए

रश्मि उषा की जब बिखरी , रुपहले हुए व्योम
शब्दों के अंकुर प्रस्फुटित, हृदय भी हुए मोम
निज  स्वप्न भरे जीवन को, करे सब साकार
दिल का चमन महक उठता,मीत हो दिलदार

महि पे विकल प्रेम में, उर, में मिलन की पीर
प्रीत की अभिव्यंजना में , बहाए  नयन  नीर
अद्य हिय की अगन बुझे ,हो सजन संग प्रीत
मृदु नेह की झड़ी उर में, प्रेम  की हो जीत

 

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