Sunday 18 November 2018

यात्रा वृतांत चार धाम की

विधा - संस्मरण

यूँ तो मैं देहरादून में रहती हूँ परन्तु पतिदेव की वर्तमान पोस्टिंग रूद्रप्रयाग आना जाना लगा रहता है । पहाड़ों की सुन्दर वादियों से हमेशा ही रूबरू होती रहती हूँ । प्रकृति के गोद में बसा ये शहर बहुत विख्यात है। यहीं से केदारनाथ और बद्रीनाथ के रास्ते अलग होते हैं ।
रूद्रप्रयाग जनपद में  केदारनाथ, तुंगनाथ,मद महेश्वर ,
शिव और पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण साथ ही अनेक सिद्धि पीठ के लिए प्रसिद्ध हैं । कहते हैं रूद्रप्रयाग संगम (अलक नंदा और मन्दाकिनी) पर नारदमुनि बरसों तप किए थे ।
हमारी यात्रा तड़के सुबह रूद्रप्रयाग संगम नगरी से आरंभ हुई...।हम अलकनंदा के किनारे होते हुए माँ धारी देवी सिद्धि पीठ के बगल से होते हुए श्रीनगर पहुँचे ।श्रीनगर में कुछ देर ठहरने के बाद पहाड़ों से गुजरते हुए विश्व प्रसिद्ध टिहरी डेम पहुँचे ।
इतनी ऊँचाई पर विशाल झील को देखकर मंत्रमुग्ध सी रह गई ।वहां बोटिंग का आनंद लेने के बाद झील के
किनारे किनारे खूबसूरत वादियों, हरे भरे सीढ़ी दार खेतों एवं अनगिनत झरणों के पास से गुजरते हुए चिन्यालीसौंड़ पहुँचे । भागिरथी नदी के किनारे बेहद सुंदर शहर देख अचंभित रह गई । भागिरथी नदी पे बना खूबसूरत पुल भ्रम दिला रहा था कहीं हम विदेश में तो नहीं आ गए ।चूँकि हम अपनी गाड़ी से सफर कर रहे थे तो कहीं भी
सुन्दर दृश्य को देखकर अपने कैमरे में कैद कर लेते थे
चिन्यालीसौंड़ में झील को छोड़कर हम भागिरथी के किनारे होते हुए धरासूँ बैण्ड और राडी टाप होते हुए गंगा वैली से गुजर कर यमुना वैली पहुँचे ।राडी टाप सात हजार  फीट से भी अधिक ऊँचाई पर है ।दिन में भी शाम होने का अहसास हो रहा था ।चीड़ और बुरांश से आच्छादित पर्वत श्रृंखला और जंगली जानवरों को देखकर मन रोमांचित हो रहा था ।मौसम इतना खुशगवार था लग रहा था सचमुच हमलोग स्वर्ग में विचरण कर रहे हैं ।
अब हम बडकोट पहुँचे । वहां पर पतिदेव के सहकर्मी मित्र स्वागत के लिए खड़े थे ।
फिर हमने उनके साथ भोजन किया ।
अब बड़कोट से आगे जानकीचट्टी के लिए निकल पड़े ।हमारे साथ वहाँ का एक स्टॉफ भी मार्ग दर्शन के लिए साथ हो लिए ।यमुना नदी के किनारे उबड़ खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए हम जानकी चट्टी पहुँच गए। रात्रि विश्राम वहीं के गेस्ट हाउस में था । यमुना की कल कल धुन मन को लुभा रहा था । हल्की बारिश व ठंडी हवाओं के करण मौसम भी काफी सर्द हो रहा था ।
सुबह हमारे घोड़े तैयार थे । हमलोग छै बजे यमुनोत्री धाम के लिए निकले । छै किलोमीटर की कठिन चढ़ाई, सीढ़ीदार संकरे दुर्गम रास्तों से होते हुए आठ बजे पहँचे यमुनोत्री धाम ।
वहाँ का प्राकृतिक दृश्य ,हिमालय से साक्षात हिम नद यमुना को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई ।वहां गर्मकुन्ड में स्नान व पूजा के बाद हमलोगों ने नास्ता किया ।कुछ घंटे गुजारने के बाद हमलोग वापस जानकी चट्टी आ गए ।फिर खरशाली (माँ यमुना की शीतकालीन निवास) घूमने गए। बेहद खूबसूरत गाँव खरशाली लगी, जहाँ मंदिर ही मंदिर थे। सागवान लकड़ी से बने मंदिर कास्टकला का अद्भुत मिशाल था। शनि मंदिर भी थुनेर लकड़ी से बना है
जाने कितने बरसों से ये खड़ा है।
लोगों ने बताया थुनेर लकड़ी में कीड़े नहीं लगते अत्यधिक मजबूत होता है ।इनके बारे में विभिन्न धारणाएँ प्रचलित हैं ।
यहाँ जो मन्नत मांगते हैं पूरी हो जाती है ।अमावस के रात रखे दो घड़े अपने आप जगह की अदला बदली कर लेते हैं ।
पर्वतीय महिलाओं से गप शप कर हम वापस बडकोट धरासूँ बैण्ड होते हुए हम उत्तरकाशी के लिए चल पड़े।वापसी पे उत्तरकाशी तक एक डॉ साथ आए थे ।बातों ही बातों में उसने का यमुना वैली गंगा वैली से अधिक संपन्न है ।उनके खेत अधिक उपजाऊ है।इसलिए अधिक संपन्न हैं परन्तु गंगा वैली वाले शिक्षित और सरकारी सर्विस वाले हैं ।यमुना वैली वाले गंगा वैली वाले को गंगाडी कहके बुलाते हैं ।वो हमें बहुत चलाक मानते हैं ....।बातों ही बातों में शाम तक हम उत्तरकाशी पहुँच गए जहाँ मेरे पतिे देव के मित्रगण अगवानी के
के लिए आ गए । फिर रात्रि में हमने उत्तरकाशी में ही विश्राम किया ।
तड़के सुबह हम गंगोत्री के लिए निकल पड़े ।मंदाकिनी के किनारे बसे खूबसूरत शहर उत्तरकाशी को निहारते 
हुए हम भटवाड़ी और गंगनानी पहुँचे ।अधिक ऊँचाई से पर्वत के वृक्ष बदल चुके थे ।चीड़ के हरे भरे पड़ो से देवदार से आच्छादित पर्वत श्रृंखला से हम सब गुजर रहे थे।
तीन चार घंटे के उपरांत हम गंगोत्री पहुँचे । उस समय सुबह के नौ बज रहे थे ।भागिरथी नदी के दिव्य दर्शन से हम सब अभिभूत हो गए ।फिर आचमन के बाद जल भर कर हम दोनों ने वहां के पुरोहित से पूजा पाठ कराई। गंगोत्री धाम के पावन भूमि के चरण स्पर्श से एक दिव्य अनुभूति महसूस हो रही थी ।सचमुच ये एक अविस्मरणीय पल था ।जिसका वर्णन शब्दों से परे है ।कोई माने न माने आध्यात्मिक शक्ति हमें सम्मोहित कर देती है । मन निष्कपट ,निस्काम, माया मोह से परे अलग ही भाव भर देते हैं ।
वहाँ भी हास्पिटल के स्टाफ डॉ परिवार आ गए ।सबने लंच ली ।फिर विदा हो गए अगले पड़ाव की ओर ...
अब धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा पूरे करने के बाद रमणिक और प्राकृतिक स्थलों की ओर चल पड़े ।
हम अब हर्षिल आ गए ।हर्षिल की खूबसूरत वादियों में आकर लगा कि हमलोग कल्पना की दुनिया में विचरण
कर रहे हैं । चारों ओर बर्फ से आच्छादित पर्वत श्रृंखला, कस्बे के बीचो बीच भागिरथी की कल कल धारा, सेब
से लदे फदे पेड़, देवदार के खूबसूरत वृक्षों की कतारें और चारों तरफ गिरते कल छल झरणों और खुशनुमा  वातावरण दिल लुभा रहा था । सचमुच हमारे ख्बावों की दुनिया हकीकत बन गई थी ।भेड़ों के झुण्डो में खड़े होकर फोटो खिंचवाने से खुद को न रोक पाए थे हम।
वहां से  दो किलोमीटर ऊपर मुखवा गाँव भी गए ।जहाँ माँ गंगोत्री की पूजन शीतकाल में होती है ।वहां अच्छे किस्म की हमने सेब की पेटी ली ।हर्षिल का सेब बहुत प्रसिद्ध है ।वैसे राजमां और आलू भी स्वादिष्ट होते हैं ...
फिर नीचे आ कर लंच लेने के बाद हमलोग हर्षिल के ही बगोरी गाँव घुमने गए । भोटिया समुदाय के गाँव में जाकर हमने भेड़ के ऊन से बने स्वनिर्मत (हस्तनिर्मित) ऊन के मौजे दस्ताने टोपी ली ।
सचमुच हर्षिल की खूबसूरती शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।इसे मिनि स्वीटजरलैंड भी कहते हैं ।
यहाँ राम तेरी गंगा मैली फिल्म की शूटिंग हुई थी ।हमने उस डाकघर का क्लिक लिया ।सुन साहिबां सुन के गीत जिस कैम्पस में हुआ था उसी गेस्ट हाउस में रात्रि विश्राम हमने किया ।हर्षिल की ठंडी हवा याद कर आज भी मन झूमने लगता है ।सुबह हम वापसी के लिए तैयार हो गए ।हम बूढा केदार का दर्शन करते हुए घनसाली चिरबिटिया होते हुए रूद्रप्रयाग आ गए ।सचमुच ये हमारे अविस्मरणीय क्षण थे ।उन यात्राओं की समृति आजीवन भूलना मुश्किल है ।
अगला गन्तव्य हमारा केदारनाथ था। यूँ तो मैं बीस वर्ष पहले गयी थी परंतु आपदा के बाद आए बदलाव को
देखने के लिए बाबा केदार नगरी के लिए मन व्यग्र हो
रहा था । उस आपदा के समय टीवी से चिपक गई थी ।
कैसे पल में हजारों लोग बह गए थे पूरी नगरी उजड़ गई थी परंतु मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ था ये जानकर केदारनाथ जाने की मेरी उत्कंठा बढ़ गई थी ।
चूँकि रामबाड़ा का नामोनिशान मिट चुका है सो गौरीकुण्ड से सीधे केदार धाम 21 किलोमीटर होने के कारण हमने गुप्त काशी से हेली से ही केदारनाथ जाने का फैसला लिया । हेली के लिए हम मंदाकिनी के किनारे किनारे अगस्त मुनि होते हुए गुप्त काशी पहुँचे
गुप्त काशी से हमारा हेली था ।
सचमुच आज के केदार धाम बेहद खूबसूरत और सुनियोजित तरीके से बसाया गया है लोगों के जाने आने रहने खाने और स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा इन्तजाम किया गया है ।रात्रि विश्राम के लिए पूर्ण सुसज्जित रहने के कमरे बनाए गए हैं ।
मंदिर के ठीक बगल वो विशालकाय पत्थर जिसने मंदिर को आपदा से बचाया उनकी भी पूजा की ।
अक्टूबर महीने में यात्रा कम होने पर बाबा केदार की पूजा पुरोहित ने हमें  बहुत सुंदर से कराया । शिवलिंग पे अंकित पार्वती माँ का छवि है ।हमने घी और मधु के लेप लगाया । कहते हैं भीम के गदा से मारने के चोट कम करने के लिए ही घी मधु लगाया जाता है ।
चूँकि यहाँ केदारनाथ में आक्सीजन की कमी हो जाती है इसलिए सेहत को ध्यान में रखकर हाॅस्पिटल में डॉ दवा आदि का बहुत अच्छा इन्तजाम रहता है ।
मंदाकिनी और सरस्वती नदी के संगम पर बसे केदार बाबा के अलौकिक दर्शन से मेरा जीवन सफल हो गया।
संगम घाट भी बहुत सुंदर से बनाया गया है।वहां हमने
सुंदर सुंदर फोटो खिंचवाया ।
केदार नगरी को सुन्दर बनाने के लिए रात दिन लगातार
मिस्री, मजदूर कर्मचारी वअधिकारी लगातार काम कर रहे हैं । सरकार का पूरा ध्यान है इस नगरी को खूबसूरत
बनाने का .....।वहां तक पहुंचने के लिए चौड़े रास्ते बनाए जा रहे हैं ।
बर्फ से आच्छादित  पर्वत के नीचे विराजमान केदार बाबा के दर्शन नसीबों से मिलता है ।बाबा की आज्ञा न हो तो संभव नहीं दर्शन ।
नयनाभिराम दृश्य को आँखों में बसाकर लंच लेने के बाद हेली से हम वापस आ गए ।
अब बारी थी बद्रीविशाल के दर्शन के लिए विदा होने की। अगले सुबह हमने नौ बजे बद्रीनाथ धाम की यात्रा
आरंभ की ।कर्णप्रयाग गोचर होते हुए जोशीमठ पहुँच गए वहाँ नरसिंग अवतार का दर्शन करने के बाद हमलोगों ने लंच लिया
जोशीमठ की ऊँचाई से कई सौ फीट सीधे उतरायी फिर
हजारों फीट की चढ़ाई बहुत ही रोमांचक लगता है ।
जगह जगह सुंदर झरणों पे मेरी बेटी और मैंने फोटो ग्राफी की । अब हम उँचे उँचे पर्वतों से गुजर कर बद्रीनाथ धाम पहुँच चुके थे । वहां की ठिठुराने वाले ठंड की परवाह किए बगैर समान गेस्ट हाउस में रखकर
हमने माँ को संभालते हुए सीधे आरती में सम्मिलित होने के लिए मंदिर की ओर चल पड़े । मंदिर के गर्भ गृह में बद्रीविशाल के दिव्य दर्शन और आरती कर हमलोगों की यात्रा सफल हो गई ।सचमुच ये जीवन के अनमोल
पल थे ।रात्रि में हमने प्रसाद और दूसरे के लिए गिफ्ट
खरीद कर अपने विश्राम गृह चले आये।
रात के तीन बजे फिर हम लोग अभिशेषक और बद्री  नारायण के श्रृंगार पूजा को चल पड़े मंदिर के प्रांगण ।बिजली कटने के वजह से माँ को लेकर जाने में परेशानी
हो रही थी परंतु मंदिर में चहल पहल के कारण पता ही नही चल रहा था कि साढ़े तीन बज रहे हैं । हमने गर्म कुण्ड में स्नान के बाद श्रृंगार दर्शन करने को प्रसाद की थाली लेकर लाइन में लग गए । साढ़े तीन घंटे की श्रृंगार पूजा इतनी सुंदर थी जिसका वर्णन करना बेहद मुश्किल है । जिसने देखा ये पूजा वो कृतार्थ हो गए....
ऐसा मेरा मानना है।उस पूजा के साथ साथ ही आचार्यों के द्वारा यजूर्वेदों का कंठस्थ पाठ देख अचंभित और
आश्चर्यचकित थी...।
रावल जी के चार घंटे नंगे पाँव से भगवान के स्नान पूजन आरती फिर अनेकानेक जेवर से श्रृंगार पूजन में
तन्मयता देख मन उन्हें पूजने को कर रहा था । हम भी इस तरह खो गए पता ही नहीं चला भयानक ठंड के हम
चपेट में आ चुके हैं ।आरती के बाद बाहर हम जब आए तो स्नो फाॅल हो रहे थे ।खैर हमारी ये हसरतें भी पूरी हो गई । चारों तरफ रूई जैसे बर्फ उड़ रहे थे ।पहाड़, पेड़ घर सब कुछ बर्फ से लक दक हो गए थे ।ऐसा लग रहा था प्रकृति ने सफेद चादर ओढ़ ली हो....।
हमने स्नोफाॅल में खूब सारी फोटो खिंचवाई ।थोड़ी मस्ती भी हो गई  बेटी कुछ ज्यादा ही खुश हुई।माँ कहीं
बीमार न हो जाए हमने भीमपुल माणा गाँव की यात्रा स्थगित कर वापसी के लिए ड्राइवर को बुला लिया  ।
बर्फवारी के कारण रास्ते खतरनाक हो गए थे।
हमने एक दो घंटे में खतरनाक रास्ते पार कर ली थी ।
फिर अलकनंदा के किनारे होते हुए हम लोग
बाबा बद्रीविशाल की दिव्य आरती और अद्भुत श्रृंगार पूजन को दिल में  बसाते हुए ...हम सभी पहुँच गए रूद्रप्रयाग  । ये अलौकिक चार धाम की यात्रा ताउम्र नहीं भूल पाएँगे....!!
जीवन के रोज मर्रे की उलझनों से निकल कर कुछ दिन के लिए सुकून का पल जीना हो और आध्यात्मिक , धार्मिक व प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना हो तो एक बार यात्रा पर सबको जरूर निकलना चाहिए ..!!

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