चाहतों की पोटली लिए फिरते हैं हम
अनगिनत ख्वाहिशों तले दब जाते हम
जीवन भर उम्मीद की आस छुटती नहीं
चाहतें एक के बाद एक बढ़ती ही जाती
बस में नहीं सभी के मखमली गलीचे
बार बार ख्वाब पर क्यों दिल सजाते
दिन रैन सुकून के दो पल की चाहतें
हर कोई जीवन भर आस लिए जीते
खुशियों के पल हम समेटते समेटते
जीवन में जाने कितने दूर निकल जाते
रह जाती सब कही अनकही चाहतें अधूरी
टूट ही जाती कभी न कभी साँसों की डोरी
छूट जाएगी मोह माया की बंधने सारी
चाहतों की लोलुपता छुटती नहीं कभी
सच्ची लगन हो चाँद पर चढ़ने की तेरी
तो अधूरी ख्वाहिशें भी हो जाती पूरी
हो रब की इनायतें तो आती है खुशियाली
भर ही जाती है असीम चाहतों की पोटली
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