Thursday 15 November 2018

कुन्डलियां

अ.
छठ* पूजा कहे सबसे , हिम्मत न कभी हार  ।       1.
हुआ अस्त उदय निश्चित , *जीवन का ये सार* ।

*जीवन का ये सार*, रखना खुद पे एतवार  ।
प्रतिकुल समय हो तो  ,धीरज होता आधार ।

समय चक्र के फेर, पर हारकर न तुम बैठ ।
दुख के बाद सुख है,कहे सबसे माता *छठ*।

*अछूता* छठ प्रपंच से  , आडंबर का न भार ।  2.
बिन पंडित का पूजन  ,  *अद्भुत ये  त्योहार*  ।

*अद्भुत ये त्योहार*, होता न मूर्ति पूजन  ।
दिनकर को अरघ दे , मन वचन करते अर्पण ।

अमीर गरीब सभी  , एक ही प्रसाद चढ़ाता  ।
हर्ष उल्लास का पर्व , आड़ंबर से *अछूता*।

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ब.
सबरी होके मगन मन , करे अश्रु से वंदन    1.
चित्रकुट में पधार रहे, सिया राम व लझ्मण

सिया राम व लक्ष्मण , के पग पखारे सबरी
सुध बुध भूला दिया ,हर्ष में खुद को बिसरी

जब होश आई उसे ,कंद मूंद लाई बावरी
फल देती हरि को,नेह से चख कर सबरी

प्रेम का प्रकाष्ठा, अद्भुत रूप ईश के      2.
मन से उन्हें भजते, छाँव में रखे नेह के

छाँव में रखे नेह के, हैं वश में वो प्रेम के
भूल अगर मान लो, क्षमा देते भक्तों के

बैर खा के झूठे  ,भी हरि रखे हृदयंगम
शरणागत वत्सल, वात्सल्य मय वो प्रेम

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