Tuesday 20 November 2018

बेटी (मुक्तक)

कोख में मौत बेटी की,सरेआम हो रही
ममता की प्याली खाली, कचरे में रो रही
बेटे की लालसा मन में, करे उपेक्षा उसकी
आज सृजन है शर्मसार, प्रकृति भी रो रही

सड़कों पे अत्याचारी, छीने नींद माँ बाप के
नन्हीं भी नहीं सुरक्षित, कहाँ रखे संभाल के
जनम लेगी कैसे कली ,डर में आज अभिवाक
घर से स्कूल तक जीती बच्ची साये में डर के 

कितनी पढ़ी हो बेटी ब्याही न जाती बिन दहेज के
समाज में व्याप्त दहेज,छीन रही जान बेटियाँ के
सबको खुश रखकर घर संभालती दिलों जान से
मिलते न चंद लम्हें जीवन में उसे खुशी व प्यार के

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