Tuesday 20 November 2018

बिन प्रीत अधूरे सब

जलना ही शमां की नियति
सदियों से उसकी यही गति
रौशन करके सबों के जीवन
तिल तिल करके वो मरती

महल हो या झोपड़ी देती
एक समान ही वो ज्योति
किसी संग विभेद न करती
जल के भी वो राह दिखाती

किस्मत में है उसका जलना
डराती नहीं उसे काली रैना
किसी से कुछ नहीं कहती
जीवन के जंग खुद ही लड़ती

देख जलते शमां को अकेली
भर आता परवाना का दिल
आरजूँ में मिलन के दो पल
जल जाता परवाना पागल

चले न जोर इश्क पे किसीका
न्योछावर हो लुटा देते खुद को
शमा परवाना का प्रेम अनोखा
है निस्काम बलिदान उसका

जाने कौन सुख मिलता उसे
मिट जाता चाहत में प्रिया के
इस जगत में बंधे हैं सब कोई
दिल से होते मजबूर हर कोई

शाश्वत सत्य यही प्रीत की
बिन प्रीतम के अधूरे सभी
मिल जाए सबको मुहब्बत
हँसते गुजरे जीवन सभी की

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