Tuesday 11 December 2018

संतुलन

विधा- राधिकाछन्द

कन्यदान पुण्य महान ,,, वेद में बखान
जगत की रीत निभा दी,,,रिक्त मन आंगन
देकर बेटी दान दृग ,,,,अश्क बहा रहे
परायी हुई जब सुता ,,,,धीर न बंध रहे

रौनक घरों की उससे ,,,हुआ करती है
वो सबके ही दिलों की  ,,, जान होती है
खुशबू होती सुता जो,,, रूह  महकाती
बसेरा बदल गया वो,,, तो पंछी होती
       
राजा हो या रंक सुता ,,विदा नियम बना 
पीली कर हाथ हिय को,,, मिले हैं  चैना
जागती नयन के ख्वाब,,, करे रब  पूरे 
योग्य घर वर ढूंढ कर,,, ब्याह तभी करे

बनाएँ जिसने चलन थे,,,बहुत सुंदर सोच
संतुलन से समाज सजा,, लाए सिर्फ मौज
देकर  बेटी  बहू  घर,,,,   सभी  ले  आते
गम और खुशी की लहर ,,,, हर ओर बहते

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