Thursday 6 December 2018

अनुराग

विधा- रूपमाला छंद

तन्हाई डरा रही मुझे , दे न सजन पनाह
रात लगे काली नागिन ,उर मचाए आह 
देख रही हूँ राह !आई , ख्वाब की बारात
तुम यूँ न मुझे तड़पाओ, दृग करे बरसात

तुम बिन जीना न गँवारा,खुद से कर न दूर
इतनी सी आरजूँ मान , तू  लेना  जरूर
करूँगी न शिकवा कभी ,रख नेह के छाँव
ये जान तुम पर कुर्बान,, दो हृदय में ठाँव

करूँ कुछ अब ऐसी जतन ,लूँ हृदय मैं जीत
दिन को भी मैं रात कहूँ, तुम से करूँ प्रीत
प्रेम में हो गई दिवानी , तुझपे दिल निसार
सदियों से भटक रही हूँ , तुम बिन बेकरार

धरा गगन से मिले रोज,आती उसे न लाज
शाम सिंदुरी हो रही है ,क्षितिज को भी नाज
प्रेम जग में सबसे पावन, सभी हिय  में  राग
तू भी जीवन रीत निभा,कर मुझसे अनुराग





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