विधा --गीत
सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर ,जिन्दगी की डोर थमा दिया
मन में ही तुझको रख अपने , मन को ही मंदिर बना दिया
लुभा गया तेरा गंधर्व रूप ,, लुटा करार हमारा दिल का
देखा करती थी निश दिन ही,,बना संयोग तुम्हें मिलने का
उर में खिलने लगा प्रेम पुष्प, सत्य स्नेह मैंने जतलाया
लगी थी आग उधर भी !भाग्य, से तुमने भी स्वीकार किया
बिन पंख उड़ने लगी आसमां ,,तुम संग ही दुनिया सजा लिया
सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर, जिन्दगी की डोर थमा दिया
चुरा लिया दिल जबसे तूने ,ख्वाब देखती दिवानी तेरी
दिवा स्वप्न में खोयी रहती , परछायी भी गुम है मेरी
लुटा दिया तुझपे ये जीवन ,,कर स्वीकार समर्पण मेरी
मीरा बनी तेरे प्रीत में,, कर रही हूँ इबादत तेरी
राह कठिन है प्रेम डगर का,,,,मन मीत सांवरे बना लिया सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर,जिन्दगी की डोर थमा दिया
अखियाँ मिल गई जब पिया संग,,जल उठी हृद में प्रेम ज्वाला
पावन मेरा दिल का रिश्ता,,,भावों से गुँथू नेह माला
पूजा है तुझे यज्ञ की तरह,,,हवन तृष्णा को कर डाला
प्रणय के मंत्र से जीवन सिक्त ,,स्वाहा अस्तित्व कर डाला
मुझ संग सातों फेरे ले कर ,, तू प्यार के वचन निभा लिया
सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर,,जिन्दगी की डोर थमा दिया
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