विधा-- मुक्तक
मात्रा भार--28
शिशु नव पौधों सा खिल जाते हैं नेह के बाग में
बने माली माता पिता लगे रहते देखभाल में
तोड़ न डाले उत्पाती करते हरदम निगरानी
महफूज रहते सभी शिशु अपने माँ के आंचल में
माता पिता के प्यार दुलारों से बचपन महकता
जीवन में वो मौजूद न हो कहाँ बचपन पनपता
पिता के बिना बच्चों का सही परवरिश संभव नहीं
बचपन होता अधूरा जब पिता का साया उठता
सबसे बड़ा गम है पिता का साया सर से उठना
पिता को खोने का दर्द मुश्किल होता है सहना
पिता के जैसा करूण हृदय किसी का नहीं होता
उनके बिन निश्चित है नैन से रोज ही अश्रु बहना
जब न रहे माता पिता कीमत तब पता चलता है
सुतों पे सब लुटाकर झोली खाली रह जाता है
फर्ज है बच्चों का वंचित न करे खुशियों से उन्हें
योग्य पूत जीते जी अरमां पूरे कर देता है
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