जन जन का खून खौल रहा बदले की आग में
आतंकवाद का सफाया करने से अब धीर बंधे
एक एक शीश लाया जाएगा खाते हैं हम कसमें
आज मातु भारती आँसु बहा रही
बेगुनाहों के खून से लथपथ हो रही
माताओं के गोद उजाड़ दी खूनी
जीवन पथ पर हुई अकेली बहना
सुहागिन की मांग क्यों हो गई सूनी
देश उबल रहा सैनिकों की कुर्बानी के पश्चाताप में
जन जन का खून खौल रहा ...
दुश्मनों तेरा अंत अब आया नजदीक
कर ली तुमने अपनी बहुत ही मनमानी
बूँद बूँद लहू की कीमत पड़ेगी चुकानी
शहीदों की शहादत अब व्यर्थ न जाएगी
दुश्मन जान लो हमारा खून नहीं है पानी
हर भारतीय का दिल जल रहा आत्मसम्मान में
जन जन का खून खौल रहा ...
आत्मग्लानी में देश वासी जी नहीं पाएगा
आतंकवादियों को अब न बख्सा जाएगा
देश को तोड़ने का ख्वाब देखना बंद करो
दुष्टों तेरे नापाक इरादा कभी न पूरा होगा
दुश्मन को मुँह तोड़ जवाब दिया जाएगा
नेता अपनी रोटी सेंकनी बंद कर वोट के स्वार्थ में
जन जन का खून खौल रहा बदले की आग में
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