Friday 17 May 2019

महका हरश्रृंगार

चिर मिलन की प्रतीक्षा में
कितना महक रहा हरश्रृंगार
दो पल की जिन्दगी लुटाके
करे नित्य रजनी का श्रृंगार...।

यामिनी पर सौरभ लुटा
हुआ न्योछावर पारिजात
तन मन किया सुवासित
मधु मिलन की आई रात...।

हरश्रृंगार लुटाने आया प्रीत,
दूर हुआ तम,निशा उन्मादित
बिखर गया उजास हृदय में 
सुरभित मन क्यों न हो मुदित.. ?

केसर धवल बिछे पारिजात,
झर झर कर करता मनुहार  ।
मलय पवन भी बहका सा,
प्रीत सुपावन देता उपहार..।

मुग्ध वसुधा भी उल्लासित
चंदन वदन लिए बिखर गया
हुए चाँद तारे भी अह्लादित
निस्काम समर्पण है अद्भुत ।

मुरझायेगा रवि के आने पर
हरश्रृंगार था शापित देवता से ।
विदा हुआ भोर के प्रथम पहर
मिटा,प्रेमपथ सुसज्जित कर..।

उषा की रक्तिम आभा झुलसी,
प्रचण्ड़ रूप दिनकर धर लेते  ।
गिरे पीत पर्ण सब पतझड़ में,
जीवन तो माटी में ही मिलते..।

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