मद में चूर मैं हूँ वृक्ष खजूर
विरल वन में मुस्कुराता,
इठलाता नभ को छू कर ।
रहा विटप से अलग थलग,
अभिमान था उँचा कद पर ।
खुशियों का उर में बजे नुपूर
मद में चूर, मैं हूँ खजूर ..।
मधु मलय से दिल झूम गया,
मुग्ध मन ऋतु आगमन पर ।
कानन भी कुसमित हो गया,
साख पर आई नव पत्तियाँ ।
लगी शुचि फलियां तब प्रचुर,
मद में चूर, मैं हूँ खजूर..।
देखी जब भी वन में हलचल,
जगा हृदय में बहुत कोतुहल ।
पपीहे, कोकिल गाये गान ,
और तितलियों के उड़े दुकूल ।
आम लीची जामुन पे बरसे नूर,
मद में चूर मैं हूँ वृक्ष खजूर ...।
दूर हुए सब,मुझसे न कोई आस
मिले न छाया,लगे फल अति दूर
लगे मेला आम जामुन के पास,
मुदित मनुज संग पशु- पक्षी
बना क्यों अलग, क्या मेरा कसूर,
मद में चूर मैं हूँ वृक्ष खजूर.....।
उनके ही जीवन का है मोल ,
लघु बन करे दूजे को उपकृत ।
हर कोई ही बजाते उनके ढोल,
लंबे होकर जीना व्यर्थ ।
सत्य भान से नैनों के छँटे शुरूर,
मद में चूर, मैं हूँ खजूर... ।
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