Saturday 9 November 2019

सरहद पे लहराए केसरिया

विधा - गीत
ताटंक छंद 16/ 14 
अंत-- 222

मत रोक प्रिये!, मातृभूमि की...
गरिमा पर बन आई है ।
मात पुकारे है पुत्रों को ... 
दुश्मन अब हरजाई है ।।

मैं हूँ प्रहरी सदा देश का. 
दाग नहीं  लगने दूँगा ।
दुश्मन सरहद पार करे तो ... 
उसका लहू बहा दूँगा ।।
सैनिक सच्चा, भारत माँ का
नाको चने चबाऊँगा ।
भारत के सरहद केसरिया ...
झंड़ा मै लहराऊँगा ।।
भारत के शूरों से अ रि ने...
हरदम मुँह की खाई है ।
मत रोक प्रिये! मातृभूमि की...
गरिमा पर बन आई है ।।

 ऱँगी लहू से,निर्दोषों के .... 
धरती का दिल भी रोता ।
नापाक पाक , दिल ना-पाकी...
बीज जहर के ही बोता ।।
मारे गद्दार निहत्थे को  .. 
दुश्मन सिर काटो काफी  ।
दीप बुझे जो, उदास बहनें.. 
अरि को मिले नही  माफी ।।
चिन्गारी हर  दिल में सुलगी 
 याद मित्र की आई है
मत रोक प्रिये मातृभूमि ...

शहीदों के बहे  शोणित को,
अव तक कौन भुला पाया?
आँसू विधवा वधु के कहते ,,,
पुत्र नहीं  जीवित आया।

हर हिन्दुस्तानी है गम में ...
मौका मिला न वीरों को
दें शहादत देश की खातिर, 
हसरत होती वीरों को
लिपट तिरंगे में जब आया ..
आँखें सब भर आई है
मत रोक प्रिये..

शौर्य सदा इतिहास लिखेगा ,
,प्रहरी वीर अनोखे हैं 
सेज बिछाते  है काँटों की, ..
आतंकी, दे धोखे हैं ।
वार पीठ पर करने को फिर
जालिम भोज परोसे हैं 
वहशी झाड़ कुकुरमुत्ते के...
बेला काटन की आई है।
मत रोक प्रिये ,,,  






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