सुषुप्त जीव में हलचल, छायी नेहिल गंध ।।
पंछी कलरव वन करे, झूम रहे मन मोर ।।
झांकती खिडकी से किरण ,,पुलक रहे हैं गात ।
रश्मि डाल पर छिटकती , स्वर्णिम लगते पात।।
मन का बिरवा पल्लवित, पुष्पित ठूँठ पलास।
मधुकर भी मँडरा रहे, प्रीतम लगते खास ।।
पुरवाई ऐसी चली , महके चंदन गात ।
विहग वृंद मधुराग मय,वृक्ष सजे नव पात।।
नेह भरे ऋतु राज मन ,पोर पोर रंगीन ।
बासंती मौसम हुआ, सब है प्रेम अधीन ।।
सिंन्दूरी सेमल भई , अमराई मदहोश ।
खग फिदा गुलमोहर पर, समा गया आगोश ।।
दुल्हन सम वसुधा दिखे , पिय बसंत है साथ ।
फूली सरसों खेत में , ज्यूँ हल्दी हो हाथ ।।
फागुन मन भरमा रहे , हुए बावरे नैन ।
डाल रहे डोरे पिया , बोले मधुरिम बैन ।।
लाल चुनरिया ओढ के , आया है चितचोर ।
सुर्ख बुँरास झूम रहा , मलय करे हिलोर ।।
पलास भी हरिया गया , आया जभी बसंत ।
लता कूँज में झूमती, आये हो ज्यूँ कंत ।।
कानों में रस घोलती , फागुन के अब गीत ।
ठोल मंजीरा दिल को , प्रतिपल लेते जीत ।।
बासंती मौसम हुआ, सब है प्रेम अधीन ।।
सिंन्दूरी सेमल भई , अमराई मदहोश ।
खग फिदा गुलमोहर पर, समा गया आगोश ।।
दुल्हन सम वसुधा दिखे , पिय बसंत है साथ ।
फूली सरसों खेत में , ज्यूँ हल्दी हो हाथ ।।
फागुन मन भरमा रहे , हुए बावरे नैन ।
डाल रहे डोरे पिया , बोले मधुरिम बैन ।।
लाल चुनरिया ओढ के , आया है चितचोर ।
सुर्ख बुँरास झूम रहा , मलय करे हिलोर ।।
पलास भी हरिया गया , आया जभी बसंत ।
लता कूँज में झूमती, आये हो ज्यूँ कंत ।।
कानों में रस घोलती , फागुन के अब गीत ।
ठोल मंजीरा दिल को , प्रतिपल लेते जीत ।।
जीवन की निधि प्रेम है, दिल में भरो अपार ।
मन आंगन पुष्पित करे, प्रेम मई संसार ।।
मन आंगन पुष्पित करे, प्रेम मई संसार ।।
उषा झा स्वरचित
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