Sunday 24 May 2020

बासंती ऋतु आई

 लाली छिटकी गगन पे , सुर्ख उषा है मुग्ध ।
सुषुप्त जीव में हलचल,  छायी नेहिल गंध ।।

रूप सुहावन दृग लगे , लगते निर्मल भोर ।
पंछी कलरव वन करे,   झूम रहे मन मोर ।।

 झांकती  खिडकी से किरण ,,पुलक रहे हैं गात ।
रश्मि डाल पर छिटकती , स्वर्णिम लगते  पात।।

मन का बिरवा पल्लवित, पुष्पित ठूँठ पलास।
मधुकर भी मँडरा रहे, प्रीतम लगते खास  ।।

पुरवाई  ऐसी  चली , महके चंदन गात  ।
विहग वृंद मधुराग मय,वृक्ष सजे नव पात।।

नेह भरे ऋतु राज मन ,पोर पोर  रंगीन ।
बासंती मौसम हुआ, सब है प्रेम अधीन  ।।

सिंन्दूरी सेमल भई , अमराई मदहोश   ।
खग फिदा गुलमोहर पर, समा गया आगोश ।।

दुल्हन सम वसुधा दिखे , पिय बसंत है साथ ।
फूली सरसों खेत में , ज्यूँ हल्दी हो हाथ ।।

फागुन मन भरमा रहे , हुए बावरे नैन ।
डाल रहे डोरे पिया , बोले मधुरिम बैन ।।

लाल चुनरिया ओढ के , आया है चितचोर ।
सुर्ख बुँरास झूम रहा , मलय करे हिलोर ।।

पलास भी हरिया गया , आया जभी बसंत  ।
लता कूँज में झूमती,  आये  हो ज्यूँ कंत ।।

कानों में  रस घोलती , फागुन के अब गीत ।
ठोल मंजीरा दिल को , प्रतिपल  लेते  जीत ।।

जीवन की निधि प्रेम है,  दिल में भरो अपार ।
 मन आंगन पुष्पित करे,  प्रेम मई संसार ।।



उषा झा स्वरचित 

 

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