आयोजन- तोटक छंद वर्णिक 02
दिन - गुरूवार
दिनांक-15.10.2020
मात्रा - 112 112 112 112
मन आहत देख अधर्म मही ।
कलि मर्दन से नित आँख बही।।
नित घात लगा रिपु जो छिपता।
उर मूक सदा, कलि क्यों छलता?
पितु मात अचंभित से वसुधा ।
जग में कलि जीवन क्यों समिधा ।।
अरि शील हरे डर में ममता ।
सुलगे मन देख सदा दुहिता ।।
बन रावण दुष्ट सिया हरते ।
कलि के मन घायल वो करते ।।
धरती अवतार उमा धर लो ।
जननी खल नाश धरा कर लो ।।
जब हो कलि मर्दन दंड मिले।
रिपु शीश नहीं अब काल टले ।।
दुहिता अपमान नहीं सहना ।
बन अग्नि शिखा नहीं जलना ।।
उषा झा -स्वरचित
देहरादून - उत्तराखंड
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