प्रदत्त बह्र पर ग़ज़ल सृजन:-२१
प्रदत्त बहर:- बहरे-रजज़ मसम्मन सालिम
मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन
मापनी:- 2212 2212 2212 2212
दिन:- बुधवार
दिनांक:- 28/10/2020
रदीफ़- किस बात का
काफ़िया- 'अ'
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2212 2212 22 12 2212
बेईमान जो भाई, मिले आदर उन्हें अब किस बात का ।
बदनाम जब हो ही गया तो लाज फिर किस बात का।।
नंगे सभी रिश्ते दिखे अब प्रेम जग में खोखले ।
झूठे लगे हर आदमी, पिघले हृदय किस बात का ।।
देखो मुखौटे में छिपे दानव करे हैं तांडव ।
जो भेडिया हो कुटिल, उम्मीद मन किस बात का ।।
करता नहीं कोई भला, पर डींग ज्यादा मारता ।
उपदेश वो छाँटे सभी पर, नित्य दिन किस बात का ।।
जब नैन के सब ख्वाब टूटे राख में हर ख्वाहिशें ।
सुन रिन्द शर्मिन्दा सदा ही, बोल तुम किस बात का।।
#उषा #की #कलम#से
देहरादून
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