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कल्पनाएँ गढ रहा मन
द्वार पे ऋतु राज आए ।
हो गई कुसमित धरा है ।
प्रेयसी का जी भरा है ।।
वाटिका लगती सुवासित ।
देख जड़ चेतन प्रभावित ।।
जागती नव कामनाएँ ।
द्वार पे ऋतु राज आए ।
वल्लरी नव मस्तियाँ है ।।
नृत्य करती तितलियाँ हैं ।
रागिनी मृदु मोद भरती ।
प्रीत से नित बोध करती ।।
झूमती है हर दिशाएँ ।
द्वार पर ऋतु राज आए।
प्रेम के सौगात लाए ।।
तरु लता भी खिल खिलाती ।
गीत मृदु कोकिल सुनाती ।।
घोलती रसना हिया में ।
आस उरजित है जिया में ।
लुप्त सारी चेतनाएँ ।।
द्वार पे ऋतु राज आए ।
प्रेम के सौगात लाए ।।
ओढ धानी चूनरी को ।
महि लजाती रूपसी को
तुंग दिखती हरितिमा है ।
पास आई प्रियतमा है ।
शशि निशा भी मुस्कुराए।।
प्रेम के सौगात लाए ।।
संग पिय मधुमास में हो ।
स्वप्न सच अब आज से हो।।
है विमल यह प्रीति जग में ।
सार जीवन रीति जग में ।।
प्रेम के सौगात लाए ।।
द्वार पे ऋतु राज आए ।
*उषा की कलम से*
यह मेरी (उषा झा) स्वरचित , मौलिक , प्रकाशित ,
अप्रेशित रचना है ।
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