Monday 22 February 2021

मधुमय बसंत

विषय - बसंत
विधा गीत
दिन - सोमवार
दिनांक - 21.02.2021

उतर आया बसंत मोरे अँगना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।
विरह वेदना भारी, छलके नयना ।।

घर पिछुआरे नित कूके कोयलिया ।
सबको मधुरिम गान सुनाती बगिया ।।
मुखरित है डाली डाली शुचि कलियाँ ।
लदे बोर पेड़ो में नव नव फलियाँ ।।
सौरभ पीकर बहके अलि तितलियाँ ।
पिय मग प्रीत छलकाती अखियाँ ।।
फिर से खिले सूर्ख गुलाब है अँगना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।।

विरह वेदना भारी छलके नयना ...।
उतर आया बसंत ....

मधुबन रंग बिरंगे पुष्प निहारे
रोम रोम सुरभित कर रही बहारें ।।
लागे धरती पे यौवन खिला खिला ।
विषाद विहिन हृदय अब नहीं गिला ।
गेहूँ सरसों खेत करे गल बहियाँ ।
मदहोश भ्रमर छुपे देखो पँखुडियाँ ।।
चाहत सदैव उर प्रीतम पर मिटना
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत म

बिहुँसकर चली मंद मंद पुरवैया ।
मलय संग ढलके सुधियों का आँचल।।
पिहू पिहू बोले पपिहरा बाग में ।
प्यासे नैन प्रियतम की बस लाग में ।।
राग रागिनी छेड़ रही मन वीणा ।
सजनी सजना के प्रेम चैन छीना ।।
घोल रहे बस जीवन में बहु रसना ।
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत मोरे अँगना ।

शूल संग फिर भी गुलाब मुस्काता
मिटकर भी जगत में खुशबू लुटाता ।
हमें सीखना गुलाब सा प्रेम लुटाना ,
दो पल के जीवन से खुशी चुराना ।।
मधुमय यह मधुमास नहीं उर छलना
कब घर आओगे परदेशी सजना ।

विरह वेदना भारी छलके नयना ।
उतर आया बसंत मोरे अँगना ।

उषा की कलम से
देहरादून 

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