गीत
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जम रही धूल अब सुधियों के,ले लो मुझे पनाहों में ।।
जल रही मनमीत सदियों से , दम निकले हैं आहों में ।।
जीवन दीया के मैं बाती ,,प्रियतम तुम घृत बन जाना ।।
आस न बुझने देना अपना, प्रेम दीपक इक जलाना ।।
मिलके सुख दुख सिर्फ बाँट लूँ ,हो नेह छाँव बस अँगना
निशि दिन सजन प्रतीक्षा तेरी, प्रेम सुधा मुझको चखना ।
चाहत दिल में बस यही चलूँ ,संग प्रीत के राहों में ।।
जम रही धूल अब सुधियों के ले लो मुझे पनाहों में ।।
प्रेम अगन में जलती निशि दिन,आँधी बुझा नहीं डाले ।
डरती दुनिया के नजरों से,, दिल जग में सबके काले।।
आ थाम एक दूजे के कर ,प्रणय धार में बह जाए ।।
विरह वेदना भारी दिल में , नैनन गगरी भर जाए ।।
तड़प रहा तन मन बरसों से, छलके पीर निगाहों में ।।
जल रही मनमीत सदियों से , दम निकले हैं आहों में।
नारी तो बाती होती है,, सदा पुरुष ज्वलन शक्ति है।
एक दूजे बिन हम अधूरे,,द्वय उर भरे आसक्ति है ।।
संग पिया हो चमके अपने, निशि दिन सितारे आसमां ।।
प्रीतम यादों को रौशन करना ,गिन रही तारे आसमाँ ।।
छोड़ गए जबसे साजन हो,नयन बहे इन माहों में ।।
जल रही मनमीत सदियों से ,दम निकले हैं आहो में ।
प्रेम सुधा नित झर झर झरते,शुचि नेह पथ प्रशस्त करे ।
नर बिना नारी है अधूरी,, बिन प्रिये दृग निर्झर झरे ।।
युग युग से प्रियतम भटक रही , तेरी करूँ बस प्रतीक्षा ।।
फैला कर आँचल माँग रही,प्रीत दान की अब भीक्षा ।
सत्य सृष्टि द्वय हृदय मिलन से,उर कली खिले बाँहों मे।
जम रही धूल अब सुधियों के , ले लो मुझे पनाहों में ।।
उषा की कलम से
देहरादून उत्तराखंड़
मैं उषा झा यह घोषणा करती हूँ कि यह मेरी स्वरचित, मौलिक ,
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