Thursday 8 April 2021

सम्मोहन प्रियतम का

नूतन चाहत हृदय सँजोये ,प्रणय रंग संसार ।
स्वप्न सजा कर इन नैनों को, करे सजन उपकार ।।
प्रेम पान को तृषित अधर है, बजते उर के तार ।
तट को तोड नदी करती है , सागर से मनुहार ।।

प्रमुदित तन मन प्रणय मिलन को, हो जीवन साकार ।
एक डोर से बँधे हुए दिल, सत्य प्रेम आधार ।।
बीज प्रेम के लगी पनपने ,सिंचित प्रणयित नीर ।
महि पर पुष्पित नेह वाटिका, बिखरे कण कण हीर।

कुंचित अलको में पिय खोये, सम्मोहन आगार ।
कलित रूपहली ओढ चूनर,पनघट बैठी नार ।।
सजल नयन के अवगुंठन में, छाये हृदय बहार ।।
ललित उरोजों से मन रसना ,चाहे मृदु अभिसार ।

रस चखने को मधुप कली से,मांगे शुचि अधिकार ।
मधुबन गूँजे मधुप दिवाना, मुखर राग दरबार ।।
हृदय विलोचन बस झूम रहा, बजे मृदुल झंकार ।
प्यासी अखियाँ ढूँढ रही है, प्रेम मिलन तैयार ।।

पिया चकित से देखे सजनी, विमल रूप शृंगार ।
चंचल हिरनी भरी कुँलाचे , वन में रास विहार ।।
नाचे गाये मन मोर जभी , पगे हृदय में प्यार।
फैली आभा प्रेम कहानी, सात समुन्दर पार ।

*प्रो उषा झा रेणु*
देहरादून  

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