Thursday 8 April 2021

मुग्ध मन दुलारी में

सार ललित छंद

कोमल कोमल फूल लगे हैं, देखो फुलवारी में ।
खिली कली ममता के आँगन,मुग्ध मन दुलारी में ।।

रंग बिरंगे बाग रहे बस , देख भाल करना है ।
पंख कली के बड़े सुकोमल, उपवन का गहना है ।।
कुत्सित मधुकर दूर रहे तब , महके हर क्यारी में ।
कोमल कोमल फूल लगे हैं, देखो फुलवारी में ।

बुरी निगाहें कलियों पर हो, तो मिले दंड भारी ।
मसल नहीं डाले दुष्ट कभी, करना पहरेदारी ।।
मोहित है गुलशन बचपन के, निशि दिन किलकारी में ।
ममता के आँगन खिली कली , मुग्ध मन दुलारी में ।।

तितली अलि का फेरा गुल में ,मन अटखेलियों को।।
मृण्मयी नयन की प्यास बुझी , चूम के पंखुड़ियों को । पुहुप जग को सौरभ बाँटने, की अब तैयारी में ।।
कोमल कोमल फूल खिले हैं , देखो फुलवारी में ।

जग बगिया की शान कली है, नेह उन्हें बस बाँटो ।
रूप दिवाने पथ भटके जो,उसके पर अब काटो ।।
सुमन सुवासित वसुधा तब हो, मधु पराग प्यारी में ।।
खिली कली ममता के आँगन, मुग्ध मन दुलारी में।।

मोदित कलियाँ चटके निशि दिन, गुल सिंचित करना है ।
बजे नुपुर छन छन छन पग में ,हृदय भरे रसना है ।।
उड़े तितलियों के दुकूल मृदु , लगती शुचि न्यारी है ।

कोमल कोमल फूल खिले हैं , देखो फुलवारी में ।
खिली कली ममता के आंगन , मुग्ध मन दुलारी में ।।
*उषा की कलम से
सर्वाधिकार सुरक्षित 

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