Saturday 10 April 2021

फागुन गीत

विषय - फागुन

अली कली मदहोश हुए हैं,प्रीत पगी मन फगुनाई।
मन विभोर खोये सपनों में ,चूनर पूर्वा फहराई ।

खिलने लगे पलास सेमल , धरा गगन है सिंदूरी ।
नैन बिछे प्रिय के आगत में , सही नहीं जाए दूरी ।।
विरह रागिनी पुहू छेड़ती, विरही अँखिया तरसाई ।
अली कली मदहोश हुए हैं , चूनर पूर्वा फहराई ।

मन मलंग अनकही प्यास है, मुखर प्रणय उर मतवाले ।
भावों कि बिसात बिछी जब, खुले हृदय के फिर ताले ।।
रंगों से अच्छादित नयना ,महि पर यौवन गदराई ।।
अली कली मदहोश हुए हैं ,प्रीत पगी मन फगुनाई ।

होली की रंगीनी देकर ,धमक ऋतु राज पुलकाते ।
वृंत अनावृत तीर चले उर, दिवाने को नित लुभाते ।।
पशु पंछी मन पुलक रहे हैं , लदी बौर शुचि अमराई ।
मन विभोर खोये सपनो में , चूनर पूर्वा फहराई ।।

उड़ने लगी गुलाल मुग्ध जगत , राधे कृष्ण अनुकूल है
मन मधु राग थाप ठोलक की , उड़े प्रिया के दुकूल है।
मधुबन में भौवरें का फेरा , कलियाँ ने ली अँगड़ाई ।
मन विभोर खोये सपनों में , चूनर पूर्वा फहराई ।।

प्रो उषा झा 'रेणु'

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