Friday 7 May 2021

यादें गाँव की


 खोयी *मैं* भूली बिसरी यादों में ।
  दादी दिख जाती पूजा करती   ,
 तुलसी वृक्ष शुचि उस आंगन में ।।
दीये की कतारें झिल मिल करती,
नित दिन तुलसी चौरा संध्या में ।

  दलान पर मंदिर के प्रांगन खड़ा,
  बूढ़ा बरगद ममत्व लुटाये बरसों से।
  चलती गाँव की चौपाल वहीं ।
 आपस में बच्चे बूढे गपियाते ।
  चुपके से लेट जाते पशु वहीं  ।।
 भाँति भाँति के पंछी आश्रय पाते,
शीतल शुद्ध छाँव बरगद लुटाते ।
शुचित वायु सबके प्राण बचाते ।।
खेलते लुका छुपी हम बच्चे वहीं।।

बाड़ में  नीम के पौधे लगे थे ।
दादा जी कहते देख डाॅ पौधे  ।।
होते अंग अंग इनके गुणकारी ।
 करो नमन सब कोई अब इनको ,
 छाँव में इनके तनिक सुस्ता लो ।।
 
कट गए वृक्ष,अब चौपाल कहाँ !
कमरों में हुए बंद सब ए सी में ।।
 भटक रहे पंछी लगाए नीड कहाँ
 तिनका ले घुमे कंक्रीट के भीड में।
  तृषित मन लौट रहे अंजान देश में

  प्रो उषा झा रेणु
   देहरादून उत्तराखंड़

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