2122 2122 2122 212
देखती कूड़ा बहाते नित्य क्रोधित जाह्नवी ।।
धीर खोती जब कहर ढाती बनी वो कालवी ।
बेबसी कैसी, नदी क्यों राह भूली बावरी ।
पाट पे अट्टालिका है शूल झूली सांवरी ।।
अश्रु नैना में भरे ,दूषित करें जल पावनी ।
धीर खोती जब कहर ढाती बनी वो कालवी
नीर सबको शुद्ध मिले, गंगा जभी निर्मल करें ।
आज सोचो क्यों नहीं हम, सोच को उज्वल करें ।।
भूल की मिलती सजा जीवन नहीं फिर सालवी ।
देखती कूड़ा बहाते नित्य क्रोधित जाह्नवी ।
खेत को सोना बनाती भर रही भंडार है ।
प्यास मानव का बुझा कर नीर में ठहराव है ।।
क्षोभ गंगा उर मनुज जब चाल चलते दानवी ।
देखती कूड़ा बहाते नित्य क्रोधित जाह्नवी ।।
नैन पट्टी बाँध कर क्यों स्वार्थ में डूबे सभी ।
शूल गंगा दिल लिए ही राह में बहती अभी ।।
हो हिया में स्वार्थ तो उर दुखी महि मानवी ।।
धीर खोती जब कहर ढाती बनी वो कालवी ।
प्रो उषा झा रेणु
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