Saturday 19 March 2022

बचपन का स्कूल

*बचपन का स्कूल* 

आह वो भी क्या दिन थे ! बचपन के स्कूल की न भुलाने वाली न जाने कितनी ही बातें याद आते ही स्मृति पटल पे बिजलियाँ कौंध जाती है।दोस्तों के साथ खेलना,एक दूजे के साथ चुहलबाजी करना, क्लास में टीचरों के पीठ पीछे चुपके से इशारे -बाजी करना , बहाने बना- बना कर सहेलियों के साथ गप्पे लड़ाना ,स्कूल के टीचरों को उसके उपनाम (जो हम बच्चों ने मिलकर रखा था) से पुकारना । वो न जाने कितनी बातें यादकर आज भी हँसी छूट जाती है ।इतनी सारी बातों को लिखना मुश्किल है ।
 यहाँ मैं अपने हाई स्कूल के दिनों की एक अविस्मरणीय यादों को आप सभी से बाँट रही हूँ ,जिसे यादकर आज भी आँखों में नमी आ जाती है ।
   बात उन दिनों की है जब मैं दरभंगा के महरानी अधिरानी में आठवीं कक्षा की छात्रा थी ।सीमा श्रीवास्तव और मैं एक दूजे पे जान छिड़का करती थी ।पढ़ाई से लेकर हर बात एक दूसरे से शेयर किया करती थी ।हम दोनों में जितनी ही मित्रता थी उतनी ही पढ़ाई में एक दूसरे से आगे निकलने का कम्पिटिशन भी ..!
   एक दिन खेल की घंटी पर मैं मैदान  नहीं गई कक्षा में ही रूकी रही सीमा आई उसने पूछा ,
" उषा क्यों नहीं जा रही हो खेलने?
मैंने सीमा से कहा, "मेरी पसंद का खेल नहीं है सो मुझे नहीं जाने का मन है।" 
वो चली गई मैं कक्षा में ही अपनी काॅपी निकाल कर पढ़ने लगी ।फिर न जाने क्यों मैं सीमा की हिन्दी की काॅपी बैग से निकाल कर पढ़ने लगी ..अभी एक पन्ना ही पलटाई थी कि सीमा आ गई ।
मेरे हाथ में अपनी काॅपी को देख, उसे बहुत ही बुरा लगा ।मुझसे फिर झगड़ने लगी । मैं तो हक्की बक्की रह गई मुझे कुछ भी  समझ में नहीं आया ।
 
उस दिन के बाद हमारी दोस्ती टूट गई ।हमने अपनी- अपनी  सीट भी अलग अलग कर ली ।अब हम एक दूसरे के तरफ देखते भी नहीं  थे।मगर हम दोनों ही बहुत उदास रहते थे ।अब एक दूसरे से बात करने को तरसने लगे ।फिर वो पर्ची में एक सायरी लिखती और मेरे बगल वाले से मुझे भिजवाती .. पर्ची पढ़ कर मैं धीरे धीरे 
उसकी ओर खिंचने लगी ..और मेरा मन पिघलने लगा ।
एक दिन ऐसा आया कि हम दोनों ही एक दूसरे के गले मिल कर फूट फूटके  रोने लगे । उसने कहा साॅरी उषा मुझे इतनी छोटी बात के लिए तुम्हें इतना बुरा भला नहीं कहना चाहिए ।
आखिर तुम मेरी बेस्ट फ्रेन्ड थी,मेरे सब चीजों पर तुम्हारा हक है ।मेरे इजाजत के बगैर भी नोट पढने पर मुझे नाराज नहीं होना चाहिए था।
मैंने भी कहा, "मेरी भी गलती थी तुमसे बगैर पूछे तुम्हारे बैग को नहीं खोलना था ।"
भीगी पलकों से मैंने सीमा से साॅरी कहा .. 
अब हमारे सारे गिले शिकवे दूर हो गए थे ।हम दोनों पहले से भी अच्छी सहेलिंयाँ बन गईं ।हाई स्कूल के बाद हम दोनों बिछुड़ गए ।कारण मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया ।आज भी मैं उसको भूल नहीं पाई हूँ।फेसबुक पर ढूंढ रही पर मिली नहीं अब तक..।

प्रो उषा झा रेणु
स्वरचित - देहरादून

 

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