Saturday 16 April 2022

परदेश की याद


बात उन दिनों की है जब मेरे पिताजी दरभंगा ( बिहार ) में यूनिवर्सिटी प्रोफेसर थे । हम सभी भाई बहनों को भी पापा गाँव से अपने पास ले आए थे ।जल्दी ही अच्छे स्कूल में हमारा दाख़िला करवा दिया गया । हम जिस किराये  के फ्लैट में रहते थे उस फ्लैट के दूसरे पार्ट में एक खूबसूरत आण्टी दो बेटों के साथ रहती थी । एक बेटा आठ साल का दूसरा गोद में ।
बड़े बेटे का नाम राॅबिन और छोटे बेटे का नाम राॅमी था । राॅबिन रंग का साँवला पर बहुत ही अनुशासित और राॅमी गोरा गोल -मोल लड्डू जैसा । राॅमी को गोद में लेने की लालच में, जब मुझे फुरसत मिलती उनके घर में घुस जाती कारण अंकल गाँव में रहते थे।आण्टी के पास यदा कदा ही आते थे । कोई रोक टोक भी नहीं थी, आण्टी बहुत अच्छी स्वभाव की थी । हम सब इंगलैण्ड वाली आण्टी कहकर उन्हें बुलाते थे ।
अपने जिज्ञासु स्वभाव से लाचार अक्सर आण्टी से नये नये सवाल पूछ लिया करती । ऐसे ही एक दिन मैंने आण्टी से पूछा , " आण्टी जी राॅबिन तो इंगलैण्ड में पैदा हुआ फिर क्यों काला हो गया?  राॅमी गोरा चिट्टा है जबकि आप और अंकल दोनों गोरे हैं, उसपर वो तो भारत में पैदा हुआ है।भारत के लोग तो उतने गोरे नही होते हैं । मेरे इस मासूम सवाल से आण्टी हँस पड़ी उन्होंने कहा,ये तो मुझे मालूम नहीं ईश्वर ही जाने , हो सकता है गर्भावस्था में उस समय की मेरी स्थिति अलग होगी । खैर उत्तर  मेरे पल्ले तो नहीं पड़ी , हाँ ये जरूर समझ गई कि रंग रूप ईश्वर के दिए होते हैं।
   अक्सर आण्टी दुखी हो कर कुछ- कुछ बेटे से कहकर बड़बड़ाती रहती थी । एक दिन राॅबिन खाना खा ही नहीं रहा था ।आण्टी ने जोर से डाँटते हुए कहा , "खाना नहीं खाओगे तो कैसे जीओगे ।अब वो जमाना नहीं रहा , केवल अंगूर, बादाम मक्खन ब्रेड खिलाती रहूँ । ये महँगी चीजें लेने के पैसे नहीं है मेरे पास ।"
मैं वहीं खड़ी थी मैंने तपाक से पूछ लिया, "आण्टी आप लोग फिर क्यों आ गए विदेश की सुख सुविधा छोड़कर ?
आण्टी ने बेमन से कहा , "अंकल को गाँव की याद सताने लगी ।अपने खेत खलिहाल माँ बाबा के बीच ही शेष जीवन काटने की इच्छा जो बलवती हो गई थी उनकी । अब वो गाँव में वैज्ञानिक विधि से खेती करने में जुटे हैं हमारी जरूरतों की तो उन्हें ध्यान भी नहीं है ।"
वैसे भी खेती से उतनी भी पैदावार नहीं होती ।  पूँजी से ज्यादा आमदनी तो खेती से निकल ही नहीं पाती है। जाने क्यों विदेश में उच्च पद आसीन इन्जिनियर की नौकरी छोड़ दी अंकल ने, अक्सर अड़ोस पड़ोस में इस बात की चर्चा होती रहती थी। 
वो तो भला हुआ  बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने गई तो आण्टी के फर्राटेदार अंग्रेजी वाचन से कान्वेंट स्कूल के प्रिन्सिपल ने उन्हें अंग्रेजी विषय की शिक्षिका के लिए मना लिया ।अब आण्टी अपनी आमदनी से अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने की कोशिश कर रही थी  ।

हमारी काॅलोनी में उन जैसी रहन सहन , ड्रैस सेंस किसी की नहीं थी । जब भी मैं और मेरी सहेली ( मकान मालकिन की बेटी ) उनके पास बैठती तो विदेश की रहन सहन खान- पान आदि पूछती रहती । वो प्रोजेक्टर पर चलचित्र आदि दिखाती कभी खुले ट्रंक के वस्त्रों ( गाऊन , कोट , पारदर्शी साड़ियाँ देख हमारे नैन ठगे रह जाते । उन दिनों भारत में ऐसे परिधान राजा महराजा , जमीन्दार की औरतों के पास भी मौजूद नहीं होगी । तब हम सहेली आपस में बातें करती , "आण्टी तो परी जैसी जीवन...रहन सहन छोड़ आई न इसीलिए शायद उदास रहती हैं ।"
    इंगलैण्ड वाली आण्टी का नाम शांता था ।वो बहुत ही सहृदय दयालु महिला थी ।आण्टी के साथ रहते तीन चार साल हो गये थे। धीरे धीरे मेरी उनसे पारिवारिक संबंध बन गया था ।
एक उच्च घराने की पढी लिखी महिला जो बरसों  विदेश में रहकर लौटी पर घमंड और दिखावा से कोसों दूर थी। उनकी सादगी और विनम्रता से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था ? उनके गुणों से हर कोई कायल हो जाते थे ।
  अब मैं  किशोरावस्था में प्रवेश कर चूँकी थी। आण्टी की हर बात मेरे मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ रहा था ।मेरी वो आइडियल आण्टी बन गई थी
मैं होम वर्क आदि से फुरसत में रहती तो आण्टी कभी कभार मुझे अपने साथ ले जाती ।काॅलोनी में यदि कोई बीमार या परेशान होते तो वो सबसे पहले ख़ैरियत पूछने जाती ।
अपनी परेशानी पर कभी किसी से नहीं कहती ।अंकल कभी कभी बहुत दिनों पर आते ।जब आते तो बहस करनी शुरू कर देते थे।
एक बार आण्टी ने कहा था, वो तो शुरू से मन के मौजी रहे हैं ।शादी कर एक बार जो विदेश गये तो दो साल तक आए ही नहीं। आण्टी से कहते अकेले ही आ जाओ ।तंग आकर आण्टी अकेली ही विदेश  गई थी ।उस समय वो मात्र अठारह वर्ष की थी । एक दिन ये बात खुद आण्टी हँसते हुए माँ को बता रही थी ।
  विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने की उनमेंअजब ताकत थी ।इसीलिए आण्टी बहुत तस्सल्ली से अंकल को जवाब देती थी ।अपनी बुद्धिमता से वो गृहस्थी की गाड़ी चला रही थी ।बच्चे बड़े हो रहे थे खर्चे बढ रहे थे।अंकल चाहे जितने भी खर्च वहन करे पर आण्टी कभी दवाब नहीं देती थी ।
सुनने में आया था कि अंकल जमिन्दार थे , भाई के संग जमीन जायदाद को  सँवारने और पुश्तैनी घर के रख रखाव में सारी पूँजी लगा रहे थे ।बरसों छूटे रिश्ते को अंकल सींचने में लगे थे  ।उन्हें लगता आण्टी तो कमा ही रही है।अपनी और बच्चों के खर्च वो आराम से चला ही रही है ।
एक बार आण्टी के आँख में अश्रु देख उनसे पूछ बैठी , "आण्टी आप अंकल को पलट के क्यों नहीं कुछ कहती ?"
आण्टी गंभीर स्वर में बोली, "माँ बाप के झगड़े से बच्चे पर बुरा असर पड़ता है और उनके विकास के मार्गअवरुद्ध हो जाते हैं।
अगले ही पल वो मुस्काकर बोली ,अरी बच्ची छोटी छोटी बातों पर मिट्टी डालना ही सही है ।"

प्रो उषा झा रेणु
स्वरचित - देहरादून
 




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